नेता यूं तो एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाज़ी करते हैं... लड़ते हैं... नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं... लेकिन कहीं न कहीं उनके बीच एक अनकहा सा समझौता भी होता है... वे एक दूसरे को बेहतर समझते हैं और मौक़े के हिसाब से अपनी रणनीति तय करते हैं। इसी पर मन ही मन कुछ विचारा तो ये पंक्तियां लिख बैठा...
जीवन
जेठ भरी दुपहरिया
सूरज की तीखी किरणों के समक्ष
खिन्न मन संघर्ष की सोचता
शायद आग के अस्तित्व को ही समाप्त करने को आतुर
इंद्र की तरफ अपेक्षित निगाह से ताकता
इस बात से अनभिज्ञ
कि इंद्र और सूर्य का हिस्सा बंटा हुआ है
तभी तो कभी ना बुझने वाला सूर्य
बादलों के बीच अपने को निस्तेज़ कर लेता है
और तब सूर्य के अस्तित्व को स्वीकारता इंद्र-कण
अपने सीने पर सतरंगी लकीरें खींच डालता है
पर एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारते हुए भी
वे जीवन में कभी साथ नहीं आते
शायद पोल खुलने का भय है
देवता कहला कर भी वे एक नहीं हो पाए
नेताओं को क्या ताना दें!
(बादलों के बीच सूरज की इस तस्वीर की ख़ासियत ये है कि ये मोबाईल फोन कैमरे से ली गई है। ये कलाकारी है हमारे मित्र नीरज गुप्ता जी की है... उनसे सहमति लिए बग़ैर इस्तेमाल कर रहा हूं... उनको बताना मत)
Thursday, May 17, 2007
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