चुसूल यात्रा समेत कश्मीर वादी पर अपनी बात आगे जारी रखूंगा। फिलहाल मेरी नज़र एक व्यंग्य रचना पर पड़ी जो मैंने अब से क़रीब ग्यारह साल पहले लिखा था। 18 जुलाई 1996 को नवभारत टाइम्स में इसी शीर्षक के साथ छपे अपने इस व्यंग्य को बिना एक शब्द काटे-जोड़े आपके सामने रख रहा हूं। आपलोगों को अगर ठीक लगे तो बाद में इस रचना के पीछे की प्रेरणा के बारे में भी बताउंगा...
व्यंग्य है क्या? एक काॅम्प्लेक्स ही ना! ये आख़िर जनमता कहां से है? असफलता जनित खीज से ही तो! मतभिन्नता हो सकती है। पर इतना तो तय है कि सभी उच्चता चाहते हैं। स्थिति की उच्चता। चाहे वो सामाजिक हो या राजनीतिक। ये सभी अर्थ से स्वत: जुड़े हुए हैं सो आर्थिक भी। अब इस रेस में पिछड़ा हुआ मगर जागरुक घोड़ा अपनी बौद्धिक उच्चता ही साबित-स्थापित करना चाहता है। इसलिए वह लिखता है। लिखने को भी असंख्य विषय हैं। सैंकड़ों बातें हैं। वह उधर नहीं जाता। उस लेखनी को मानने को भी मन से तैयार नहीं। कुतर्क देता है कि वो तो सिर्फ सूचनाओं का हस्तांतरण है। कुछ इधर से तो कुछ उधर से उठा कर। उस पर मौलिकता का लेबर लगा कर। जिनमें सोच की निजता नहीं रहती। या फिर कुछ आदर्शवादी बातों का विस्तारित बंडल। जो कम से कम आज की दुनिया को नहीं चाहिए।
तो फिर क्या चाहती है ये दुनिया? कटाक्ष! दूसरों की टिकिया को बिल्कुल साधारण साबित कर देने वाला विज्ञापन। इन सब की जड़ में क्या है? वही अपनी प्रतिष्ठा की ज़िद। सफलता की चाह। दूसरों को नीचा देखने की महत्वाकांक्षा। अपनी दमित भावनाओं को तुष्ट करने की ललक। यहां आकर आदर्श के शाब्दिक तर्क बेकार हो जाते हैं। शुरु होता है वैचारिक तिकड़म को शब्दरुप देने का सिलसिला।
जैसा कि पहले भी लिखा गया है। सभी चाहते हैं दौलत और शोहरत। चाहते हैं उन्हें नोटिस किया जाए। अपने समाज में, सर्किल में देश में और दुनिया में। लेकिन आपको कैसे नोटिस किया जाए भाई? हवाला में आपका नाम नहीं, बोफोर्स को मृतप्राय: है और यूरिया के वक्त भी आप सोते रहे। दाऊद से तो क्या किसी राव तक से आपका नज़दीकी संबंध नहीं। १९८४ के दंगों में भी आपने ख़ास योगदान नहीं किया। बेहमई कर इलेक्शन लड़ते तब भी चलता। लेकिन नहीं। इंडस्ट्रियलिस्ट-कैपिटलिस्ट आप हैं नहीं और एन्नाराई बन नहीं सकते। तो माफ कीजिएगा भूखे मरने वालों को नोटिस करने का यहां कोई प्रावधान नहीं। आप जितनी क़ूवत वालों की यहां कोई पूछ नहीं।
मान लीजिए आप लिखते हैं और इसी से वो सब कुछ पा लेना चाहते हैं जो अन्यत्र आपको नहीं मिला, तो क्या कोई स्कूप है आपके पास? क्लिंटन-बेनज़ीर संबंध का। या कोई केन्द्रीय मंत्री है जिसकी बदौलत आप कूद सकें। कोई आपको पालने वाला है। आपके लिए कोई इतना नरम और मुलायम है कि जो अपने कोटे आपको कुछ दे। नहीं न! एक तो आप अंग्रेज़ी के आॅथर भी नहीं और अपने अवैध संबंधों का ख़ुलासा भी आप नहीं करेगें। आपका किसी से अवैध संबंध रहा इसकी भी कोई गांरटी नहीं। अपनी यौन कुंठा के बारे में लिख कर बड़े लेखक होने का प्रमाण आप दे नहीं सकते। 'दिल्ली' नहीं तो 'पटना' ही लिख दीजिए। आपका सेटेनिक वर्सेज़ तक आपके लिए फलदायी नहीं हो सकता क्योंकि आप सहिष्णु कहे जाने वाले धर्म के अवलंबी हैं।
फिर तो मुश्किल है आपको नोटिस करना। अब तो आपको वही नोटिस कर सकता है जो नियतिवश या मजबूरीवश आपकी ही स्थिति से गुज़र रहा हो। जो अभी तक समाज में, इवेन अपने परिवार में भी अपने लिए इच्छित जगह नहीं बना पाया हो। जो करना तो बहुत कुछ चाहता हो पर कुछ कर नहीं पा रहा हो। सिवाए आत्मप्रशंसा के। दूसरों के सफलता की असलियत खोलने के। उसमें आवश्यकतानुसार मिर्च मसाला डालने के। चटकारे ले लेकर सुनाने के। जबकि उसे निश्चत पता है कि स्थिति आएगी तो वो भी ख़ुशी ख़शी वही करेगा जैसा उसके पड़ोसी या बाॅस ने या फिर देश के किसी नेता या लेखक-पत्रकार ने किया होगा। कोई तभी तक ईमानदार है जब तक कि उसे बेईमानी का मौक़ा नहीं मिलता। यही मौक़ा आपको नहीं मिला है। आपको ही क्यों बहुतों को नहीं मिला है। वे सभी आजतक की असफलता से खीजे हैं। जले भुने बैठे हैं।
उठाइए कलम और रख दीजिए उनके मर्म पर। चुभने के बावजूद तसल्ली मिलेगी। कुछ ऐसा लिखिए कि सब से आगे निकल चुके भाई-बान्धवों पर दुलन्ती प्रहार कीजिए। भड़ास निकालिए। अपनी असफलता के झूठ की तुलना दूसरों की सफलता के सच से करिए। लाख मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करिए। उनको कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं। हां, आपका एक पाठक वर्ग है। वह ज़रूर आपको नोटिस करेगा कि कितने बड़े बुद्धिजीवी हैं। आसपास की ही बात करते हैं। और आपका लिखा हुआ छपेगा।
Sunday, May 6, 2007
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3 comments:
मज़ा आ गया । नोटिस होने की आदत से कैसे बचा जाए इस पर एक किताब लिखो। ब्लाग लिखो। पाठक बनते रहे हैं। बनते रहेंगे। हर लिखे का नोटिस होता है। नोटिस कमाल का शब्द है। अच्छा व्यंग्य
हौसला आफ़जाई के लिए आपका शुक्रिया रवीश जी।
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। नियमित लेखन हेतु मेरी तरफ से शुभकामनाएं।
नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।
ई-पंडित
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