Wednesday, September 30, 2009

अकेला शख्स और अमेरिका

इन दिनों अमेरिका के दौरे पर हूँ. फिलहाल वॉशिंग्टन में हूँ. अमेरिका पूरी दुनिया को परमाणु हथियार ख़त्म करने की सीख देने मैं लगा है. लेकिन ठीक व्हाइट हाउस के सामने १२ साल से धरने पर बैठा शख्स खुद अमेरिका को चुनौती दे रहा है... परमाणु हथियार ख़त्म करने को कह रहा है. दुनिया का सबसे मज़बूत कहा जाने वाला प्रशासन चाह कर भी उस शख्स को हटा नहीं पाया है. दिलचस्प सच्चाई है.... इस तरह की छोटी बड़ी काफ़ी बातें बताने को है. वक़्त नहीं मिल पा रहा. तस्वीरों के साथ जल्द की कुछ बेहतर पेश करने की कोशिश करूँगा. शुक्रिया

Thursday, August 27, 2009

पाक मंदिर पर रिपोर्ट : पीछे की कहानी

पाकिस्तान से रिपोर्टिंग अपने आप में चुनौती का काम है। भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा जो एक शक का माहौल रहता है उसके मद्देनज़र दोनों देशों के पत्रकारों की चुनौती और बढ़ जाती है। पाकिस्तान जा कर ज़मीन से रिपोर्टिंग करने के मुझे अब तक तीन मौक़े मिले हैं। ये तीनों ही मौक़े पाकिस्तान की इतिहास के अहम पड़ाव रहे हैं... इमरजेंसी, बेनज़ीर की हत्या और आम चुनाव।
पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों की हालत पर मेरी इस रिपोर्ट की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इसे मैंने तमाम मुश्किलातों के बीच तैयार की है।

1- स्थानीय वीज़ा के बिना

2- ख़ुद कैमरा चलाते हुए

3- कठिन पहाड़ी रास्ता और

4- पाकिस्तान में इमरजेंसी के हालात

पाकिस्तान जाने वाले भारतीय नागरिकों को वहां के हर ज़िले के लिहाज़ से वीज़ा लेना होता है। मतलब अगर वीज़ा लाहौर का है तो आप सिर्फ लाहौर जाएगे... आस पास के भी किसी और इलाक़े में नहीं। मेरे पास सिर्फ लाहौर का वीज़ा था जबकि कटासराज, नंदना का किला, मकलोड का विष्णु मंदिर झेलम और चकवाल ज़िले में आते हैं। ये सभी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सुदूरवर्ती इलाक़े हैं। यहां तक मेरा पहुंच पाना इसलिए संभव हो पाया क्योंकि में साउध एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन (साफ्मा) के पत्रकारों के एक डेलिगेशन में शामिल था।

इस पूरी रिपोर्टिंग के दौरान कैमरे से पूरी शूटिंग मैने ख़ुद की। पीस-टू-कैमरा कई बार कैमरे को दीवार या फिर किसी पत्थर पर रख कर करना पड़ा। जो कुछ भी रास्ते में मिलता मैं उसे कैमरे में उतारता गया। सबसे ज़्यादा मुश्किल पेश आयी नंदना फोर्ट के रास्ते में। 5 घंटे की ट्रेकिंग। कोई पगडंडी भी नहीं... जिधर चल पड़ो उधर से ही रास्ता निकालने जैसी हालत। कंटीली झाड़ियां , पहाड़ पर कभी खड़ी चढाई तो कभी सीधी ढ़लान, रास्ता भटक जाना, पीने के पानी का ख़त्म हो जाना और दल के कई साथियों का बीमार पड़ जाना। ये सभी बातें इस रिपोर्ट में शामिल हैं।

3 नवबंर को, इस शूट के बीच में ही पाकिस्तान में जेनरल मुशर्रफ़ ने इमरजेंसी लगा दी। इससे सुरक्षा के हालात और ख़राब हो गए। भारतीय नागरिक होने की वजह से मेरे पाकिस्तानी साथी मुझे लेकर काफ़ी चिंतित हो गए... लेकिन सबों ने मेरे काम में पूरा सहयोग दिया और मेरा हौसला बनाए रखा।

इन हालातों के बीच तैयार इस रिपोर्ट में मैंने कटासराज, मकलोड और नंदना मंदिर के भूत और वर्तमान के बारे में बताने की कोशिश की है। स्थानीय गाइड सलमान राशिद साहब के अलावा दल में शामिल पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, नेपाल जैसे देशों से आए पत्रकार साथियों के ऑन-द-स्पॉट कमेंट्स हैं।

एक ऐसे समय में जब पाकिस्तान में सिर्फ टेरेरिज़्म की बात होती है... मैंने टूरिज़्म की बात कर ये जताने की कोशिश की है कि अगर इस मुल्क के अंदरुनी हालात पर क़ाबू पा लिया गया तो ये न सिर्फ एक बेहतरीन टूरिस्ट डेस्टीनेशन बन सकता है... बल्कि बड़ी तादाद में हिंदू तीर्थ यात्रियों को भी अपनी ओर खींच सकता है।

मेरी इस रिपोर्ट को एनडीटीवी इंडिया पर पहली बार 29 जून 2008 को रात साढ़े नौ बजे प्रसारित किया गया।

Tuesday, May 5, 2009

kabul day 1

kabul pahunch chuka hun. yahaan se devnagree main blog update karne main kuchh samasyaa hai... comp-net janit. isliye aaj kee pooree baat baad main. yahaan dilli kee garmee se raahat hai. sham 5pm (local time) 19 degree tha... night main to 16 ke aaspaas mehsoos ho rahaa hai... :)

farid usee garm joshee se mila jaise wo pakistan main mila karta tha... 

jaaree

पाकिस्तान, तालिबान... अफ़गानिस्तान

आज अफ़गानिस्तान निकल रहा हूं। मक़सद वहां की ज़मीनी हालात को देखना और दिखाना है। एक ऐसे माहौल में जब चारों तरफ तालिबान को लेकर शोर शराबा है... आख़िर उस मुल्क़ में क्या हो रहा है जहां वो (तालिबान) पैदा हुआ, पला-बढ़ा और फिर उसकी विषबेल अपने माली (अमेरिका) को ही लपेटने में जुट गई। अमेरिकी और नाटो फोर्स के दबाव में तालिबान ने अफ़गानिस्तान से लगे पाकिस्तानी इलाक़े का रुख़ तो कर लिया है लेकिन पुरानी ज़मीन से भी उनके पैर पूरी तरह से उखड़े नहीं हैं। कोशिश होगी काबुल की ताज़ा कहानी बताने की।

Sunday, April 26, 2009

सारे लेखक हो गए... पाठक कौन बचा?

महीने बाद ब्लॉग पर आया हूं। देख रहा हूं सभी लिख रहे हैं। किसी के दिल में तो किसी के दिमाग में एक विचार है। किसी के पास अनुभव है तो किसी के पास अपना कोई ख़्याल। अच्छी बात है। होने भी चाहिए। पर देखा कि कोई किसी को पढ़ नहीं रहा। न अनुभव की कद्र है ना ख़्याल पर भरोसा। ब्लॉगवाणी के हिट्स के हिसाब से बता रहा हूं। घंटों पहले की पोस्ट पर रीडर ज़ीरो हैं... पसंद की तो बात ही मत पूछिए। नापसंद का कोई कॉलम नहीं है। याद है मझे दो साल पहले का वो वक्त। छोटी से छोटी बात लिख देने पर भी एकाध पाठक तो आ ही जाते थे। फिर अब क्या हुआ। क्या अपना पढ़ना अच्छा नहीं लग रहा या किसी और का लिखना!

Sunday, March 8, 2009

मुशर्रफ़ से मुलाक़ात

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ भारत में हैं। व्यक्तिगत दौरे पर। मेरा उनसे आज एक बार फिर आमना सामना हुआ। संक्षिप्त बात हुई। मैंने उनसे कहा कि जब आपने पाकिस्तान में इमरजेंसी लगाई तब मैं वहीं था... आपके इस क़दम से पाकिस्तान का बुद्धिजीवी वर्ग बहुत गुस्से में था। अब आप अलग रोल में हैं। पर पाकिस्तान में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा।
मुशर्रफ़ ने मेरी पंक्तियों का क्या मतलब निकाला मुझे नहीं पता... पर एक पूरी नज़र देखा। मैंने अपना कार्ड आगे बढा दिया। ये कहते हुए कि मौक़ा मिला तो फिर आना चाहूंगा। उन्होने कहा... "स्योर"।

मुशर्रफ़ उस कॉनट्रैक्ट से बंधे थे जिसमें उन्हें किसी से भी कुछ बात करने की मनाही थी। एक मीडिया ग्रुप के अलावा। सो वे अपनी तरफ से कम से कम बोले। अब राष्ट्रपति नहीं हैं... पर कमांडो जैसी अनुशासन का पालन अब भी कर रहे हैं। नहीं तो बताते कि आख़िर जिस वजह से उनके ख़िलाफ पाकिस्तान में मुहिम चलायी गई वो वजहें अब भी क़ायम हैं। ज़रदारी बतौर राष्ट्रपति उन्हीं अधिकारों को छोड़ने को तैयार नहीं जिन्होने जेनरल मुशर्रफ को मुशर्रफ़ के तौर पर ब्रांड कर दिया। पर फिलहाल वे ख़ामोशी में ही बेहतरी समझ रहे हैं। शायद किसी बेहतर कल के इंतज़ार में।

आगे भी और बात होगी।