Wednesday, August 22, 2007

बोनलेस के बाद अब मज़ा लीजिए हेडलेस चिकन का!

(शाकाहारी ब्लागर बंधु इस पोस्ट के लिए कृपया माफ करेगें)

प्रिय ब्लॅाग पाठकों,

यूं तो चिकन कई प्रकार के होते हैं। देसी चिकन और फार्म वाले चिकन। इन्हें कई तरह से तैयार किया जाता है। तंदूर भी और ग्रेवी वाला भी। कईयों को बोनलेस में मज़ा आता है। पर अब चिकन प्रेमियों के लिए हाज़िर है हेडलेस चिकन।

ये व्यंजन बनाया अमेरिका में बैठे भारत के राजदूत रोनेन सेन ने। कह दिया कि परमाणु करार का विरोध करने वाले हेडलेस चिकन की तरह हैं। गर्मागरम व्यंजन भारत पहुंचा। हिन्दी में अनुवाद हुआ बिना सिर वाली मुर्गी। पर जब संसद में हंगामा हुआ तो पता चला कि उनके कहने का मतलब था बिना भेजे वाली मुर्गी। मतलब कि करार का विरोध करने वाले बेवकूफ हैं। थोड़ा और नीचे उतरते तो शायद करार विरोधियों को बर्डफ्लू से पीड़ित चिकन कह देते। पर गनीमत है कि सिर्फ हेडलेस ही कहा। हालांकि अब सेन ने अपने कहे पर माफी मांग ली है। इसलिए वो मामला ख़त्म मान लिया गया है। पर जाने अनजाने हमारे हाथ हेडलेस चिकन बनाने की विधि हाथ लग गई।

ये व्यंजन खाने के लिए नहीं है। सिर्फ बनाने के लिए है। अगर आपका किसी से किसी मुद्दे पर विरोध हो तो आप उसे हेडलेस चिकन बना दें। बिना भेजे वाला करार दे दें। ना भेजा होगा ना वो आपका भेजा फ्राई करेगा। आख़िर उंची शिक्षा का इतना तो फायदा होना चाहिए कि ग़ाली भी दें तो व्यंजन की तरह लगे।

आपका
हेडलेस ब्लागर

मेरा पहला प्यार...जो अब तक मेरी बीवी से भी छिपा है!

प्यार प्यार होता है। पहले प्यार की तो बात ही क्या। छिपाए नहीं छिपता। बशर्ते आप चाहें। पर कई बार आप जब खोलना भी चाहें तो छिपा रहता है। क्योंकि वो प्यार ही ऐसा होता है। फिर भी दुनिया उस प्यार को मानने को तैयार ही नहीं होती। और जब आपकी दुनिया आपके घर में सिमट आए...मतलब आप शादीशुदा हो जाएं तो आपकी बीवी को तो हरगिज़ ये क़बूल नहीं होगा कि आपका प्यार ऐसा होगा। वो भी पहला प्यार। ख़ासतौर पर जब आपने खुद को एक प्यारे इंसान के तौर पर पोर्टे कर रखा हो। दुनियादारी से मिली इसी सीख की वजह से मैंने अपनी बीवी को अब तक अपने पहले प्यार के बारें में नहीं बताया। सच बता भी दूं तो खामख़्वाह शक करेगी। कहेगी मैं ही मिली हूं बेवकूफ बनाने को। बरगलाना किसी और को। नस नस पहचानती हूं तुम्हें।

तो इसी डर से मैंने अबतक अपनी धर्मपत्नी पत्नी को अपने पहले प्यार के बारे में नहीं बताया। ये सोच कर कि अगर वो शक नहीं करेगी तो शायद भरोसा भी ना करे। पर लगा कि आप सबों को बता सकता हूं। क्योंकि मन में कुछ भी छिपाने की आदत नहीं रही। कल को मौक़ा लगे तो आप बता देना मेरी बीवी को। मेरे निर्दोष होने का सर्टिफिकेट देते हुए। वो भरोसा कर लेगी। बहुत निर्दोष है। अपने पति के अलावा उसे किसी की बात पर शक नहीं होता। इतनी निर्दोष कि आपकी सौ झूठी बातों पर भरोसा कर ले पर मेरी एक सच्ची बात पर सौ सवाल। इसलिए आपको वकील बना रहा हूं। जज तो वही रहेगी।

तो मीलार्ड.... मेरा तर्क है कि प्यार की कम से कम 72 परिभाषाएं हैं। एक वाक्य में हम भगवान से प्यार करते हैं। दूसरे वाक्य में हम अपने कुत्ते से भी प्यार करते हैं। तो किस प्यार में क्या आकर्षण तलाशा जाए कि वो वाकई में प्यार ही लगे। लालच या मौक़ापरस्ती नहीं। पर ये तय करना मुश्किल हो जाता है। बेशक मेरे केस में ना हो। क्योंकि... हां मैंने कई कई बार प्यार किया है। शादी हो गई तो क्या। आज भी कईंयों से प्यार करता हूं। आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ना तो मेरे प्यार को ना तो गुनाह ठहरा सकते हैं और ना ही क़ैद कर सकते हैं।... और मेरे पहले प्यार की याद तो आप कभी मिटा ही नहीं सकते। फिर तो ये मुकद्दमा ही बेकार है। आपकी ये अदालत अर्थहीन।

आप वैसे ही प्यार से पूछ लो। क्या रहा मेरा पहला प्यार। जो लाया मेरे जीवन में बहार। इकलौता बेटा होने की वजह से हमेशा मां को लगता रहा कि कहीं मेरे साथ बुरा ना हो जाए। इसलिए वो मेरे कई प्यार को ठुकराती रही। पतंग उड़ाने के प्यार को कि कहीं छत से ना गिर जाए। क्रिकेट में कार्केट की गेंद के इस्तेमाल के प्यार को...कि कहीं गेंद से चोट ना लग जाए। फुटबाल में फारवर्ड खेलने के प्यार को कि धक्का मुक्की ना हो जाए। लकड़ी के डंडे को हाॅकी स्टिक के तौर पर इस्तेमाल के प्यार को कि कहीं किसी से लड़ाई ना हो जाए। बस की छत पर बैठ खुली हवा खाते सफ़र के प्यार को कि कहीं चलती बस से गिर ना पडूं।। पोखर में चचेरे भाईयों को नहाते देख खुद तैरना सीखने की इच्छा के प्यार को कि कहीं डूब ना जाऊं। यहां तक कि दूर जाकर... नेतरहाट में पढ़ने के प्यार को और छात्रावास में अकेले रहने के प्यार को भी...कि बीमार पड़ जाउं तो देखभाल कौन करेगा।

...पर इतनी प्यारी मां होते हुए भी वो मेरे पहले प्यार को रोक नहीं पायी। वो था हीरो की 24 इंच की साईकिल कसा कर उसकी सवारी का प्यार। उसे लगता रहा कि अगर साईकिल पर निकला तो ट्रक के नीचे आ जाउंगा। कोई टक्कर नहीं भी मारा तो भी मैं मारा जाउंगा। इसलिए गाड़ी या रिक्शे में ही ठीक हूं। साईकिल खरीद कर देना ठीक नहीं। फिर भी खरीद दिया। क़रीब साढ़े पांच सौ की।

आज सपने कहीं बड़े हो गए हैं। पर उस साईकिल की नाचती रिम की वो चमक आज भी आंखों में है... जब अपनी साईकिल अपना पहला प्यार था..! उसकी गद्दे वाली सीट... उसका बैक करियर जिस पर किसी को भी बिठा सकता था। कुछ और पैसे दे हैंडिल कैरियर भी लगवाया... ताकि किताब कांपी लगा सकें। आईना और झालड़ के बिना... ताकि बेसिक लुक दे। जंक लगने से बचाने के लिए मिट्टी तेल की मालिश.... पर आज की बीवी को ये कौन समझाए कि एक लड़के का पहला प्यार ऐसा भी हो सकता है। कह दूं कि दीप्ती नवल... अनीता राज... किमी काटकर या फिर हेलेन ही सही... तो शायद एकबारगी वो मान ले। कि ऐसा हो सकता है। हा हा हा। आप भी ठहाके लगाईए।

Sunday, August 19, 2007

हाथों का इस्तेमाल कुछ ऐसा भी!

हाथ कई काम आते हैं। अच्छे काम में... कम अच्छे काम में और बुरे काम में भी। किसी को कुछ देने या किसी से कुछ छीनने के काम... हाथ जोड़ने या फिर तोड़ने के काम। हाथ लगाने या खींचने में। सहारा देने या छुड़ाने में। कई बार हमें किसी काम में दूसरों का हाथ नज़र आता है। जैसे भारत में होने वाली हर आतंकी घटना में आईएसआई का हाथ। कहते हैं कि कानून के हाथ लंबे होते हैं फिर दाऊद है जो हमारे हाथ ही नहीं आता। कांग्रेस कहती है कि उसका हाथ ग़रीबों के साथ। परमाणु डील पर अमेरिका से हाथ मिलाने पर लेफ्ट सरकार से हाथ खींचने की बात कर रही है। कोई किसी के हाथ में आकर खिलौना हो जाता है। कहते हैं कि हर सफल मर्द के पीछे एक औरत का हाथ होता है। हाथ हिला पास बुलाया जाता है और दूर रहने का इशारा भी। सहलाया भी जाता है और पीटा भी। सिर पर हाथ रख आगे बढाया जाता है और हटा कर गिराया भी। हाथों के इन परंपरागत इस्तेमाल से अलग कुछ अलग हाथ देखिए।











हाथों को रंग कर बनाए गए अनोखे चित्र




Friday, August 17, 2007

जहां हैंडपंप देख कर शादी होती है

हमीरपुर ज़िले के सिसोलर गांव में एक हैंडपंप से पानी भरने की ख़ातिर एक व्यक्ति ने चार लोगों को गोली से उड़ा दिया। इसी सिलसिले में वहां गया। पानी की समस्या कई कई रुप यहां देखने को मिले।

लेकिन सबसे दिलचस्प कहें या दुर्भाग्यपूर्ण कि कई गांवों में लड़कों की शादी एक समस्या बन जाती है। लड़की वाले आते हैं तो पहले गांव में पानी की व्यवस्था देखते हैं। चालू हालत में हैंडपंप घर के आसपास हो तो बात बनते देर नहीं लगती। लेकिन अगर पानी दूर कुंए से लाना हो तो कई मांबाप अपनी बेटी देने को तैयार नहीं होते। हालांकि हर बार ऐसा नहीं होता लेकिन सोचिए जिन कुछ मामलों में ही ऐसा होता होगा कितनी परेशानी वाला होगा। लड़की के लिए अगर थोड़ा क़ाबिल लड़का मिल भी रहा हो तो पानी की कमी रिश्ता नहीं होने देती। और लड़कों की सोचिए। क्या बीतती होगी दिल पर।

ऐसा भी नहीं है कि हर कोई वहां अपना हैंडपंप लगा ले। ज़मीन के नीचे पानी बहुत कम है। चट्टान ज़्यादा हैं। चाह कर भी बोरिंग नहीं होती। होती भी है तो हैंडपंप जल्द सूख जाते हैं। इसलिए कई इलाक़े में तो लोग हैंडपंप पर ताला लगाने से भी नहीं चूकते। तीन साल से सूखा पड़ा है। इसलिए ग्राउंड वाटर रिचार्ज भी नहीं हो पा रहा। सरकार कुछ नहीं कर रही। किसान परेशान हैं। ऊपज नहीं हो रही और लोग दाने दाने को मोहताज।

Tuesday, August 14, 2007

कैमरा भी कर सकता है रिपोर्टर

नीरज गुप्ता को आप में से कई जानते होगें। अरे वही 'वारदात' आजतक वाले... जो बाद में आईबीएन सेवेन में 'क्राईम द किलर' करने लगे। वे जब कैमरे के सामने होते हैं तो सुंदर दिखते हैं। पर जब कैमरे के पीछे होते हैं तो ज़्यादा सुंदर दिखाते हैं। अगर हम और आप दुनिया की कई चीज़ों को उतनी खूबसूरती के साथ नहीं देख पा रहे जितनी कि देखनी चाहिए... तो इसके पीछे एक बड़ी वजह ये है कि नीरज रिपोर्टर बन गए। अगर वे पेशे के तौर फोटोग्राफी कर रहे होते तो शायद बात कुछ और होती। लेकिन अपने व्यस्त क्षणों में भी लंबी छुट्टी लेकर वे कभी एशिया तो कभी मलेशिया घूम आते हैं। यादों के लम्हों की कुछ तस्वीरें ले आते हैं। कभी मोबाईल कैमरे से खींची तो कभी दूसरे कैमरे से। उनकी खींची कुछेक तस्वीर हाथ लगी है। आपकी नज़र कर रहा हूं। दिलचस्प बात ये है कि ये तस्वीरें किराए के कैमरे से खींची गईं हैं।

लद्दाख में इसी तरह की खूबसूरती है। एकबार जाने पर लौट कर आने की इच्छा नहीं होती।

लेह से क़रीब डेढ़ सौ किमी दूर पैगॅाग त्सो। 14,500 फीट की उंचाई पर खारे पानी का झील

सिंधु नदी जिसके किनारे आर्य सभ्यता का जन्म हुआ।

Sunday, August 12, 2007

एक पत्रकार की दुखद मौत, हमारी श्रद्धांजलि


ज़ी न्यूज़ संवाददाता शोभना सिंह की दर्दनाक मौत से हमें भी सदमा लगा है। हम उन्हें काम करते हुए पत्रकार के तौर पर देखते रहे हैं इसलिए जानते हैं। जिस तरह काम करते हुए हिमाचल के छतरु में एवलांच में फंस कर उनकी जान गई....ये ज़िम्मेदारी के प्रति उनकी निष्ठा और काम के प्रति उनके समर्पण को ही दिखाता है। ऐसे पत्रकार को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि।

सांसद को पकड़वाएं, ढाई हज़ार रुपये पाएं

फूलपुर से समाजवादी पार्टी के सांसद अतीक अहमद अब ईनामी बदमाशों की श्रेणी में आ गए हैं। उत्तर प्रदेस शासन ने उन पर पच्चीस सौ रुपये का ईनाम रखा है। सांसद महोदय पर अपने भाई के साथ मिल कर बीएसपी विधायक राजूपाल की हत्या का आरोप है। फिलहाल फरार चल रहे हैं इसलिए ईनाम रखा गया है। इन पर कई दूसरे आपराधिक मामले भी हैं। राज्य में अब बीएसपी की सरकार है। ऐसे में सिर पर ढाई हज़ार का ईनाम उनके लिए तौहीनी की बात हो सकती है। इनका डीलडौल देखें तो ये वाकई में ज़्यादती लगती है। फिर भी आपको कहीं दिखें तो उत्तर प्रदेश पुलिस को बताने का कष्ट करें। अगर ये छोटे मोटे चोर होते तो शायद ढूंढने में ज़्यादा मेहनत लगता और तब शायद ईनाम की रकम भी बड़ी होती। फिर भी ढाई हज़ार भी कोई छोटी रकम नहीं होती। आप भी ढूंढें मैं भी ढूंढता हूं। देखें किस्मत किसका साथ देती है।

Monday, August 6, 2007

सॅारी, आपके ब्लॅाग्स के लिंक डिलीट हो गए हैं

प्रिय ब्लॅागर बंधुओं,

आपमें से जिन साथियों के चिठ्ठों के लिंक मैंने अपने चिठ्ठे पर दिए थे वे मेरी तकनीकी जानकारी की कमज़ोरी के चलते डिलीट हो गए हैं। इसके लिए मुझे खेद है। पहली फुर्सत में मैं उसे दुबारा लगाने की कोशिश करुंगा। अविनाश ने इस काम में तकनीकी मदद का भरोसा दिया है। आप में से कोई चाहें तो इसकी विधि मुझे मेल कर सकते हैं।

आप इसे अन्यथा ना लें।

आपका
उमाशंकर सिंह

Sunday, August 5, 2007

बिहार में बाढ़ और मॅारीशस में मुख्यमंत्री

जब बिहार में बाढ़ का पानी तबाही मचा था, मुख्यमंत्री नीतिश कुमार डाक्टरेट की उपाधि लेने मॅारीशस की यात्रा पर निकल पड़े। 30 अधिकारियों की फौज भी उनके साथ गई। मॅारीशस में उन्होने 'बिहार वीक' का उद्घाटन किया। लेकिन क्या वे अपने साथ बिहार की इन तस्वीरों को ले गए...?... उनको इन तस्वीरों को दुनिया भर में दिखाना चाहिए कि ये बिहार की असली तस्वीर है। लेकिन शायद वो अपने मुख्यमंत्री निवास के आसपास की कुछ चमचमाती तस्वीर दिखा कर दुनिया भर के निवेशकों को लुभाने की कोशिश करते हों।
आपत्ति उनके मॅारीशस यात्रा पर नहीं... यात्रा कि टाईमिंग पर है। और लौट कर आने के बाद भी उनकी आंखें नहीं खुली हैं। वे बस अपने 'भरोसेमंद' ज़िला कलेक्टरों की बात सुन कर ये तय कर रहे हैं कि कौन से ज़िले बाढ़ग्रस्त हैं कौन से नहीं।
जागिए नीतिश जी, इन तस्वीरों को देखिए... एक बार ठीक से देख लेंगे तो शायद नींद नहीं आएगी...आंखे खुल जाएंगी!