Thursday, May 15, 2008

लोकतंत्र के मुहाने से लौटता पाकिस्तान!

आख़िर वही हुआ जिसका डर था। नवाज़ शरीफ़ ने सरकार से अलग होने का फ़ैसला कर लिया। नवाज़ की पार्टी पीएमएल एन के सभी मंत्रियों ने प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा ग़िलानी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। (मंगलवार को सौंप रहे हैं) हालांकि सरकार गिरी नहीं है क्योंकि शरीफ ने मुद्दा आधारित समर्थन देते रहने की बात की है। लेकिन वो भी कब तक ये साफ नहीं है। अगर पीपीपी नवाज़ की मांगों को यूं ही दरकिनार करती रही तो बात आगे जा सकती है। फिलहाल मसला देश में इमरजेंसी के साथ बर्खास्त हुए जजों की बहाली का है। पिछले साल 3 नवबंर को राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने जब इमरजेंसी लगाई तो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद इफ्तिखार चौधरी समेत अपनी मुखालफ़त करने वाले तमाम जजों को बर्खास्त कर दिया। पीपीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाने के समय से ही नवाज़ शरीफ उन जजों की बहाली को अपनी नाक का सवाल बनाए हुए हैं। वो मुशर्रफ को भी राष्ट्रपति भवन से बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं। दरअसल नवाज़ शरीफ की पार्टी पीएमएल एन के साथ साथ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने भी मुशर्रफ विरोध को अपना चुनावी एजेंडा बनाया था। बेनज़ीर की मौत से उपजी सहानुभूति और मुशर्रफ़ के खिलाफ आवाम के गुस्से के बूते वो सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी।

बातचीत के लंबे दौर और मड़ी बैठक में हुए समझौते के नवाज़ शरीफ ने पीपीपी को समर्थन देने और सरकार में शामिल होने का ऐलान किया। इसी चार्टर ऑफ डेमोक्रेसी के तहत बर्खास्त जजों की बहाली एक महीने के भीतर करने नवाज़ ने शर्त रखी थी। वो भी संसद में अध्यादेश के ज़रिए। लेकिन गठबंधन सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है। पीपीपी इसी को आधार बना कर अध्यादेश लाने से इंकार करती रही है। हालांकि इसके पीछे असल वजह अमेरिका का दबाव है। अमेरिका वॉर ऑन टेरर के अपने सहयोगी और काबालयली इलाके में सैन्य कार्रवाई की इजाज़त देने वाले मुशर्रफ को नहीं खोना चाहती। इसलिए उसने पीपीपी पर पूरा दबाव बनाया हुआ है कि वो मुशर्रफ के साथ चले। उन्हें हटाने की कोशिश ना करे। ये दबाव इसलिए भी कारगर हो पा रहा है क्योंकि ये अमेरिका ही था जिसने बेनज़ीर और मुशर्रफ के बीच सुलह करा कर बेनज़ीर के पाकिस्तान वापिस लौटने का रास्ता साफ किया था। बेनज़ीर और मुशर्रफ के बीच का नेशनल रिकांसिलियेशन एलायंस इसलिए परवान नहीं चढ़ पाया क्योंकि मुशर्रफ 58-2बी को छोड़ने को तैयार नहीं हुए। फिर बेनज़ीर की हत्या हो गई। चुनावी परिदृश्य में ज़रदारी आए। मुशर्रफ के खिलाफ लड़ कर पीपीपी सत्ता तक तो पहुंच गई लेकिन वो उस हालात से बाहर नहीं निकल पायी है जो अमेरिका ने तय कर रखे हैं। लिहाज़ा प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी को मुशर्रफ के साथ करार तक करना पड़ा है कि वे ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था’ की मज़बूती के हक़ में आपस में नहीं टकराएंगे।

नवाज़ शरीफ को ऐसी ही बातें नागवार लग रही हैं। वे उस मुशर्रफ को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे जिसने उन्हें न सिर्फ गद्दी से उतारा बल्कि दस साल तक पाकिस्तान से भी बाहर रखा। लेकिन मुशर्रफ को हटाने का उनका कोई भी दबाव अभी तक काम नहीं आया है। उल्टा ज़रदारी ने एक बयान में यहां तक कह दिया कि जिन जजों को बर्खास्त किया गया ‘वे निजी स्वार्थ साधने में लगे थे... राष्ट्रहित में नहीं’। पुराने जजों की बहाली को लेकर ज़रदारी को भी ये डर है कि उनके खिलाफ भ्रष्ट्राचार के मुकद्दमे फिर ना खुल जाएं। इमरजेंसी लगाने के बाद मुशर्रफ ने पीसीओ यानि प्रोविजिनल कॉस्टीट्यूशनल आर्डर के तहत जिन जजों को नियुक्त किया, उन्हीं जजों ने ज़रदारी के खिलाफ मुकद्दमे हटाने के आदेश दिए। ये नेशनल रिकांसिलियेशन एलायंस की उन शर्तों में से एक था जिससे पीपीपी नेता को फायदा पहुंचना था। वही हुआ भी। तो पीपीपी और मुशर्रफ के बीच इस तरह का जो ‘वर्किंग रिलेशन’ बना उससे नवाज़ शरीफ ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। कहां तो वो मुशर्रफ को बाहर देखना चाह रहे थे और कहां वो उनका बाल भी बांका नहीं कर पा रहे। साथ ही, वे पाकिस्तानी शासन-सत्ता को अमेरिकी सरपरस्ती से निकालना चाह रहे हैं। अमेरिका उन्हें पसंद नहीं और वे अमेरिका को। पाकिस्तान में अमेरिकी उपस्थिति के खिलाफ और अपनी दक्षिणपंथी कट्टर छवि के साथ खड़े नवाज़ शरीफ के सामने जो रास्ता बच गया है उन्होने उसी पर चलने का फैसला किया है। नवाज़ शरीफ के इस कदम के बाद पीपीपी ने हालांकि ये कहा है कि वह आने वाले दिनों में संवैधानिक प्रावधानों के तहत जजों की बहाली के लिए प्रस्ताव लाएगी। लेकिन ऐसा कह कर पीपीपी अपनी सरकार के लिए समय ख़रीदती नज़र आ रही है।

नवाज़ शरीफ ने कैबिनेट से अपने मंत्रियों को हटा तो लिया है लेकिन ये भी साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी विपक्ष में नहीं बैठेगी। मतलब उनके समर्थन से सरकार चलती रहेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीफ को अभी सरकार गिराने का फायदा नज़र नहीं आ रहा। सत्ता में पीपीपी और मुशर्रफ दोनो हैं और ऐसे में चुनाव में उन्हें जबर्दस्त धांधली की आशंका होगी। इसलिए उन्होने पहला कदम उठाया है। सरकार से बाहर निकल कर वो अपना वोटरों को तैयार कर रहे हैं। ऐसे संदेश के साथ कि देखो पीपीपी अपने वायदे से मुकर गई। तानाशाह मुशर्रफ से समझौता कर बैठी। इसलिए अब उन्हें मौक़ा दिया जाए। पाकिस्तान की मीडिया, वकील और बुद्धिजीवी वर्ग से समर्थन हासिल करने की शरीफ की कोशिश रंग ला सकती है। ये सभी पीपीपी के अभियान को समर्थन देते रहे हैं। लेकिन मुशर्रफ और बर्खास्त जजों को लेकर पीपीपी के रुख़ से इन सबों का काफी हद तक मोहभंग हुआ है।

हालांकि ज़रदारी इस सच्चाई को समझते हैं कि पाकिस्तान में सरकार अवाम के वोट से नहीं, ताकत की ओट से चलती है। पाकिस्तानी सेना और अमेरिका दोनों ही मुशर्रफ के साथ हैं। ऐसे में ज़रदारी अगर अवाम के जज़्बात को समझते भी हो तो उसके लिए अपनी सरकार की क़ीमत अदा नहीं करना चाहते। सवाल है कि अब आगे क्या होगा। नवाज़ शरीफ अगर सरकार से समर्थन भी वापस ले लेते हैं तो दो-तीन सूरतेहाल पैदा होती हैं। पहला कि पीपीपी मौजूदा गठबंधन के दूसरे दलों के साथ साथ पीएमएल क्यू यानि मुशर्रफ की काफ लीग के सांसदों के साथ सरकार बचाने की कोशिश करे। हालांकि ज़रदारी ने साफ किया है कि वे किसी भी हाल में काफ लीग के साथ नहीं जाएंगे। लेकिन जिस मुशर्रफ और अमेरिका के सामने वो इतने विवश हो गए हैं कि नवाज़ शरीफ और अवाम की इच्छा का गला घोंट दिया हो वो सरकार बचाने के लिए इस हद तक भी चले जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

दूसरी सूरतेहाल तब बनती है अगर मौजूदा सरकार गिर जाती है। सरकार बनाने की नवाज़ शरीफ की किसी कोशिश को राष्ट्रपति मुशर्रफ परवान चढ़ने नहीं देगें। दो प्रमुख राजनीतिक दलों के झगड़े का फायदा उठा कर मुशर्रफ चुनी हुई सरकार पर पूरी तरह हावी हो जाएंगे। पाकिस्तान उसी हालात में पहुंच जाएगा जहां से उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अपनी लड़ाई शुरु की थी। इतनी जल्दी दुबारा चुनाव होने की गुंजाइश कम नज़र आती है। और अगर चुनाव होते भी है तो मुशर्रफ की व्यवस्था अवाम के तमाम सहयोग के बाद भी नवाज़ शरीफ को सत्ता तक पहुंचने देगी इस पर शक बना रहेगा। यानि एक सच्चे लोकतंत्र के लिए पाकिस्तान की जद्दोज़हद और लंबी खिंचने वाली है।

( अमर उजाला के 15मई 2008 के अंक में प्रकाशित)

Sunday, May 11, 2008

पाकिस्तान में हिन्दी न्यूज़ चैनल!

आपको कुछ हैरानी हो सकती है। पर ये सच है। अब पाकिस्तान में भी देखा जा सकता है एनडीटीवी इंडिया। इसके लिए एनडीटीवी ख़बर डॉट कॉम की टीम को बधाई!

हुआ कुछ यूं कि शनिवार को मैंने श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ विदेशी मित्रों को ईमेल कर दिया कि वे एनडीटीवी इंडिया पर साढ़े नौ बजे पोखरण टेस्ट पर रिपोर्ट देखें... www.ndtvkhabar.com पर। बदले में पेशावर से मेरे दोस्त हमजा का जो मेल आया है उसे यहां कट पेस्ट कर रहा हूं...

HI BROTHER,IT WAS NICE TO SEE UR SPECIAL REPORT ON SUCH INFORMATIVE TOPIC. REALLY IT WAS NICE ONE. I ADMIRE UR EFFORTS AND I HOPE THAT IT MUST HAVE TAKEN ALOT OF TIME. IF I GET THE CD OF IT THEN IT WILL BE VERY MUCH GOOD SO THAT I CAN SHOW IT TO MY STUDENTS BUT I M SURE THAT THERE WILL DIFFICULTY IN SENDING IT BACK TO PAKISTAN.KEEP ENJOYING AND SAY MY SALAM TO ALL THERE.TAKE CARE AND ALL THE BEST. SAY MY SALAM TO UR FAMILY.
YOUR BROTHERAMIR HAMZA BANGASHLECTURER JOURNALISM AND MASS COMMUNICATION DEPTTPESHAWAR UNIVERSITY...

आपको जानकारी होगी कि पाकिस्तान ने भारतीय न्यूज़ चैनलों पर पाबंदी है। लेकिन एनडीटीवीखबर.कॉम की वजह से ये संभव हो पाया कि वहां भी एनडीटीवी देखा जा सकता है। इसके लिए एनडीटीवीखबर.कॉम को एक बार फिर बधाई!

शुक्रिया
उमाशंकर सिंह

Saturday, May 10, 2008

सिर्फ एनडीटीवी इंडिया पर

पोखरण-2 के दस साल हो चुके... इस एनडीटीवी इंडिया की एक रिपोर्ट... कैसे हुआ ये सब संभव और क्या फ़ायदा हुआ देश को। भारतीय समयनुसार आज रात साढ़े नौ बजे...

इंटरनेट के ज़रिए एनडीटीवी इंडिया लाइव देखने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें।

http://www.ndtvkhabar.com/

शुक्रिया