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जैसे ही मुंबई से लौटा आॅफिस की एक सहयोगी ने पूछा कि कैसा है हवाई जहाज। मैंने कहा कैसे बताऊं। फिर उसे लगा बताने कि सोचो। जैसा अक्सर किसी पिक्चर में होता है कि विलने से बचने के लिए हिरोईन ट्रेन पर सवार हो जाती है। विलेन पीछा जारी रखता है। हिरोईन अलग अलग कूपों और डिब्बों छिपती छिपाती फिर रही है। विलेन टाॅयलेट तक में उसे ढूंढने की कोशिश करता है लेकिन उसके चंगुल में आने से बचने की कोशिश करती रहती है। ऐसा कोई सीन याद करो और ट्रेन की जगह इस प्लेन को रख दो। तो कहानी कुछ ऐसी बनेगी।
एक विलेन हिरोईन का पीछा कर रहा है। हिरोईन भागते भागते एयरपोर्ट पहुंचती है। छिपते छिपाते किसी तरह कारगो ट्राली में बैठ तक वो एक एयरक्राफ्ट तक पहुंच जाती है। वो एयरक्राफ्ट एयरबस A380 होता है। पीछे विलेन भी आ रहा होता है। हिरोइन हवाई जहाज के पहियों के बीच अपने को छिपा लेती है। 22 जोड़े पहिए हैं इस हवाई जहाज में। इनके बीच से छुप कर निकलते हुए वो एक स्टेप लैडर तक पहुंचती है। इस प्लेन में सोलह दरवाज़े हैं। इसलिए स्टेप लैडर भी कई हैं। जहां स्टाफ कम है वो वहां से उपर निकल जाती है। एयर क्राफ्ट के भीतर घुसती है। वो एक दरवाज़े से घुसती है। विलेन दूसरे से घुसता है। हिरोईन पहले अपने को एक्जक्यूटिव क्लास की बड़ी
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तब तक विलेन पर्दे के पास पहुंच जाता है। विलेन को लगता है कि अब कहां जाएगी। ये तो प्लेन का सबसे पिछला हिस्सा है। अब तो पकड़ में आ ही जाएगी। वो एक हाथ में पिस्तौल पर पकड़ मज़बूत करते हुए दूसरा हाथ पर्दे पर दे मारता है। पर पीछे कोई नहीं मिलता कुछ नहीं मिलता। तब तक हिरोइन हवाई जहाज़ के उपरी डेक पर पहुंच गई होती है। वो अपने को एक टाॅयलेट में बंद कर लेती है। लेकिन उसे लगता है कि यहां वो सुरक्षित नहीं है। विलेन पहुंच गया तो कोई चीख पुकार भी सुनने वाला नहीं क्योंकि उपरी डेक बिल्कुल खाली है। वो टाॅयलेट से निकलती है। खिड़कियों से बाहर देखते हुए आगे बढ़ती है। 220 खिड़कियां हैं इस डबल डेकर विमान में। हिरोईन को उम्मीद है कि हीरो मदद के लिए आएगा। तब तक विलेन को भी सीढी का पता चल चुका होता है। बूट खड़काते हुए वो सीढियां चढ़ने लगता है। हिरोइन आगे की तरफ भागती है। अब उसमें ज़्यादा दम नहीं बचा। सांस फूल रही है। वो जितना भाग सकती है भाग लेना चाहती है। सैंकड़ों सीट को पार कर वो उपरी डेक पर आगे की तरफ पहुंच जाती है। तब तक विलेन एक एक टाॅयलेट का दरवाज़ा झटके से खोल कर उसे में ढूंढ रहा। एक का दरवाज़ा अंदर से बंद मिलता है। विलेन को लगता है कि उसकी शिकार यहीं छिपी है। वो दरवाज़ा तोड़ने पर उतारू होता है। तो अंदर से खीज़ते हुए एक एयरहाॅस्टेस दरवाज़ा खोलती है। डांटती है इतनी तेज़ लगी है तो दूसरा टाॅयलेट इस्तेमाल कर लो यहां कौन सा एक या दो टाॅयलेट हैं। बदमाश विलेन भी एयरहाॅस्टेस की डांट खा कर चुप रह जाता है। मुंह घुमाता है और आगे की तरफ भागता है। उसे लगता है कि शिकार दूर निकल गया है।
हिरोइन अगली सीढी से फिर नीचे के डेक पर आ चुकी है। दूबारा वही एयरहास्टेस मिलती है जो उससे टकराई थी। इसबार उसके हाथ में कुछ कपड़े हैं। वो हिरोइन को देखकर एक बाॅथरुम में धकेल देती है। थोड़ी देर बा
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विलेन हिरोईन का पीछा करते करते थक चुका है। अब तो उसे उसकी आहट भी नहीं मिल रही। वो बार के पास पहुंचा है। देखता है कि एक से एक ब्रांड हैं। वो गला तर कर लेना चाहता है। पर शरीफत से कुछ भी करने की आदत नहीं। लिहाज़ा हाथ में लहराती पिस्तौल काउंटर पर खड़ी लड़की की कनपटी पर सटा देता है। हिरोईन को लगता है वो पहचानी गई है। उसके मुंह से चीख निकलने वाली होती है। विलेन उसका मुंह दबा देता है। हिरोईन को लगता है अब नहीं बचेगी। वो विलेन को उन हीरों बारे में बताने ही वाली होती है... कि विलेन फुंफकारता है मुंह मत खोलो। मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए। बस एक लार्ज पेग नीट व्हिस्की दे दो। और हां किसी को बताना मत कि मैं यहां अपनी शिकार की तलाश में हूं। नहीं तो जान से मार दूंगा। हिरोईन की जान में जान आता है। वो लंबी सांस लेती है। अपना चेहरा दूसरी तरफ करने की कोशिश करते हुए विलेन की तरफ पूरी बोतल बढ़ा देती है...विलेन बोतल लेकर शिकार की तलाश में फिर जुट जाता है... फिल्म का क्लाईमेक्स सीक्वेंस है। फिल्म अभी ख़त्म नहीं हुई है। ब्रेक के बाद शूटिंग जारी है। कारगो डेक पर शूटिंग अभी हुई ही नहीं जहां 350 करोड़ पिंगपॅाग बॅाल एक साथ रखे जा सकते हैं।
कहने का मतलब ये एयरबस A380 इतना बड़ा है कि इसमें पूरी फिल्म बन सकती है। उस फिल्म का शायद उसका नाम हो... हवा में टाईटैनिक!
झेलने के लिए धन्यवाद
8 comments:
बहुत बढ़िया आपने तो बड़ी जल्दी ही एयरबस ए-380 की पूरी कहानी कह डाली। सबसे पहले मै इस पर यही कहूंगा कि इसे काॅपी राइट करा लीजिए वनाॻ बाॅलीबुड का कोई निमाॻता आपकी इस थीम पर बढ़िया सी फिल्म बना डालेगा। वैसे विवरण काफी अच्छा लगा मै उन भाग्यशाली लोगों में नही था जो एयरबस ए-380 का सफर कर रहे थे लेकिन आपकी रोमांचक कहानी ने एयरबस ए-380 को और भी रोमांचक बना दिया
सुधीर कुमार
डी डी न्यूज़
शुक्रिया सुधीर। जल्द ही इस एयरक्राफ्ट की एक और उड़ान पर ले चलुंगा।
- उमाशंकर सिंह
कभी फिल्म बनाने की सोचो तो हमें याद रखना.
लगता है संजय को विलेन का रोल पसंद आ गया है। अब बस तलाश हिरोइन की रह गई है। मिलते ही फिल्म शुरु करते हैं।
हा हा हा
तो उमा भैय्या, फ़िलम में संजय भाई के लिए विलेन का रोल रख लिया आपने, मतबल जे कि हीरो आपई बनोगे तय है।
वैसे बहुत बढ़िया तरीके से ए-380 की जानकारी दी आपने, धन्यवाद
शुक्रिया संजीत भाई।
वैसे देखा जाए तो हीरोवन के लिए अब बचा ही क्या है... न तो असल ज़िंन्दगी में और ना ही फिल्मन में। पूरा टाईम ससुरा धक्का खात है और पिटता रहा है। मज़ा तो विलेन उठाता है। जब हीरो की खुशी का टाईम आता है तो फिल्म ही खत्म हो जाती है। तो ऐसे में विलेन का रोल तो ज़्याद बढ़िया है।
ख़ैर अगले सीक्वेंस में फिर बात होगी।
अच्छा फिल्मांकन किया है।
bahut sahi.Aur kuch nahi to picture hi bana dali.maja aa gaya.
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