Monday, March 31, 2008

एक ब्लॉगर की आखिरी पोस्ट

ब्लॉगर साथी अजय रोहिला का साथ छूट चुका है। अजय के ब्लॉग चौपाल http://nairaahe.blogspot.com/ पर ये आखिरी पोस्ट है। ये अजय की संवेदनशीलता दर्शाती है। चौपाल पर आकर अजय को श्रद्धांजलि दें।

Monday, February 18, 2008

मौत..... दयालुता के साथ

यह बीबीसी की हैडलाइन स्टोरी है..... अग्रेज वाकई में बड़े नमॆदिल और दयालु प्रवॆति के होते है........अमरीका के कृषि विभाग (यूएसडीए) ने क़रीब साढ़े छह करोड़ किलो गोश्त वापस लौटाने का आदेश दिया है. देश के इतिहास में मांस की वापसी का यह सबसे बड़ा आदेश है. ह्यूमन सोसायटी ऑफ़ अमेरिका के एक वीडियो शॉट के प्रकाश में आने के बाद संयंत्र के कामकाज को रुकवा दिया गया है.

किसी अमेरिकी चैनल पर एक वीडियो में दिखाया गया है कि कैसे बीमार और कमज़ोर पशुओं को संयंत्र के कर्मचारी बाँधते हैं, मारते हैं, विद्युत करंट लगाते हैं और तेज दबाव से उन पर पानी डालते हैं। संयंत्र के दो पूर्व कर्मचारियों पर शुक्रवार को पशुओं के साथ क्रूरता करने का आरोप लगाया गया जिसकी जाँच अभी जारी है

क्रप्या इस लाइन को थोड़ा तसल्ली से पढ़े....कंपनी का कहना है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए अब कार्रवाई कर रही है ताकि सभी कर्मचारी पशुओं के साथ दयालुता के साथ पेश आएं.(पढ़े दयालुता से मारा जाए)साला ...जब किसी को मौत देनी ही है तो इसमें दयालुता दिखाकर कौन सा हथिनी की.....पर भाला मार देगे... उन बेजुबानों को आखिरकार मिलनी तो मौत ही है.... क्या कहते है

Posted by अजय रोहिला at 11:39 AM 4 comments Links to this post

अजय रोहिला का यूं चले जाना

आप में से कई अजय को जानते होंगे। एक सक्रिय ब्लॉगर और पाठक। सटीक टिप्पणीकार। अचानक पता चला कि होली के दिन वो हमारे बीच नहीं रहा। ब्रेन हैमरेज का शिकार हो गया। अजय से मैं कभी व्यक्तिगत तौर पर नहीं मिला। लेकिन अजय के बड़े भाई संजय रोहिला और मैंने जम्मू और कश्मीर में लंबा वक्त बिताया है। अजय अक्सर उन तस्वीरों के बारे में पूछा करता था जो हमने साथ खींचे थे। अब बस सिर्फ अफसोस है। इतनी कम उम्र में ऐसे जाना। पीछे अपनी पत्नी और गोद में एक छोटी बच्ची को छोड़ जाना। हिम्मत नहीं हो रही कुछ लिखने की। फिर भी लिख रहा हूं क्योंकि चाहता हूं कि हमारे बीच के एक शख्स को हम सभी याद करें।

हमारी श्रद्धांजलि!

Sunday, March 16, 2008

सरबजीत को फांसी और ख़बरबाज़ी

patinetsसरबजीत को 1 अप्रैल को फांसी की ख़बर पाकिस्तान के एक उर्दू अख़बार डेली एक्सप्रेस के हवाले से आयी। जब मुझे जानकारी मिली तो मैंने इसकी आधिकारिक पुष्टि चाही। कोट लखपत जेल के सुपरिटेंडेंट जावेद लतीफ को फोन घुमाया। रविवार को वे उपलब्ध नहीं थे। पाकिस्तान के इंटेरियर मिनिस्टर हमीद नवाज़ ने भी अपना फोन नहीं उठाया। लाहौर पुलिस के डिप्टी डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन अतहर खान ने इस बाबत कोई जानकारी होने से मना कर दिया। बिना आधिकारिक पुष्टि के मैं इस ख़बर को रोके हुए था। क़रीब घंटे डेढ़ घंटे बाद एक हिन्दी और एक अंग्रेज़ी चैनल पर ये ख़बर चल पड़ी। सरबजीत को एक अप्रैल को फांसी...। अजीब हैरत की स्थिति थी। उनके पास भी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं लेकिन ख़बर लपक ली गई। एंजेसी के ज़रिए जो ख़बर आयी उसमें भी आधिकारिक पुष्टि नहीं होने की बात थी।

एक चैनल ने पाकिस्तान के मानवाधिकार मंत्री अंसार बर्नी के हवाले से पट्टी चलानी शुरु की। लेकिन मेरी बात बर्नी साहब से हुई तो उन्होने भी इस ख़बर के कंफर्मेशन से मना किया। उस चैनल को ऐसा कुछ कहने से भी। कहा सोमवार 10-11 बजे तक ही कहा जा सकेगा। क्योंकि ये सिर्फ दो मुल्कों के आपसी रिश्तों का ही नहीं एक पूरे परिवार की संवेदना से जुड़ा मामला भी है। चैनलों पर ख़बर चलने के साथ ही सरबजीत के परिवार की मन स्थिति का अंदाज़ा मुझे हो रहा था।

भगवान ना करे सच हो... पर अगर फांसी की तारीख मुकर्रर हो भी गई है तो होनी अपना काम करेगा। लेकिन मेरा प्वाईंट सिर्फ इतना है कि क्या आधिकारिक पुष्टि होने तक इस ख़बर को रोका नहीं जा सकता था? क्या सरबजीत के परिवारवालों की एक और रात की नींद उड़ने से बचाया नहीं जा सकता था। सच है कि ख़बर हमने भी चलायी लेकिन इस पर फोकस करते हुए कि सरबजीत के रिहा होने की उम्मीद अभी पूरी तरह टूटी नहीं है। दया याचिका के दो मौक़े उसके पास और हैं। शायद ऊपरवाला सुन ले।

जूता चोर, गद्दी छोड़, जूता-खोर


ये वैसा ही जूता है जिसे लेकर शोर मच रहा है। द्रास के पास मच्छोई ग्लेशियर पर भारतीय सेना के जवानों के लिए विंटर वार फेयर ट्रेनिंग पर डॉक्यूमेंटरी बनाते समय मुझे ये आज से सात आठ साल पहले पहनना पड़ा था। ये जूते कहां के बने हैं और इनकी कब ख़रीद हुई ये मुझे नहीं पता... पर इन जूतों में भी पैर को ठंड से तसल्ली नहीं थी। मैं दो-तीन जुराबें पहना करता था। जूते उतारते वक्त तब भी जुराबों में नमी जमी मिला करती थीं। बर्फ के तौर पर। हालांकि तब एनडीए की सरकार थी। सीएजी की रिपोर्ट अब खुलासा कर रही है कि फौज़ियों के जूतों की ख़रीददारी में घपला हुआ है। यूपीए के ज़माने में।
जूता चोर... गद्दी छोड़... जूताखोर... सोमवार को संसद में शायद यही नारा लगने वाला है। सियाचिन जैसे जमा देने वाले इलाक़ों में तैनात भारतीय सेना के जवानों के लिए ख़रीदे जा रहे जूतों में धांधली की बात सीएजी रिपोर्ट में सामने आने के बाद विपक्ष चुप नहीं बैठने वाला। ख़ासतौर पर वो एनडीए, जिसके रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नाडिस पर ताबूत घोटाले का आरोप लगाते हुए यूपीए ने ताबूत चोर तक करार दिया था।

Sunday, March 2, 2008

चैनलों के लिए आधे घंटे का मसाला!

भारत आस्ट्रेलिया के आज के मैच के दौरान एक दर्शक नंग धरंग मैदान में घुस आया। सुरक्षाकर्मियों ने तौलिया लपेट कर उसे बाहर निकाला। इस घटना के बाद मैदान पर दर्शकों के व्यवहार के बहाने न्यूज़ चैनलों के लिए विशेष दिखाने का अच्छा मौक़ा है। देखते हैं कौन सा चैनल मैदान मारता है!