Thursday, July 12, 2007

जो पाले उसी का कर दो नाश

मिट्टी पानी का खुराक
और धूप, हवा, छांव भी
पौधे ने गमले से सब कुछ लिया
पेड़ बनने के क्रम में।

पौधा गमले में अपनी जड़ें फैलता गया
पेड़ बनने के क्रम में।

और एक दिन,
पौधे ने गमले को ही चटका दिया
पेड़ बनने के क्रम में!!!

6 comments:

अनिल रघुराज said...

ये किसी निजी चोट की अभिव्यक्ति तो नहीं। वैसे ऐसा ज्ञान बुजुर्गों को ही दो-तीन औलादें पैदा करने के बाद होता है।

उमाशंकर सिंह said...

ये आंखों देखी सत्य है सर जी!

Udan Tashtari said...

कई घरों की कहानी है, मित्र. बहुत अच्छी तरह गमले में सहेजी है. गहराईपूर्ण रचना.

विनोद said...

achhi kavita likh rahe hain. mujhe yaad hai aap pahle bhi likha karte the. aaj kal Khabaron Ki Khabar lene me vyast rahte.

Yatish Jain said...

सही कह आपने
पर मेरे खयाल से अगर आप बडे अस्तित्व वाला पौधा छोटे गमले मे लगओगे तो यही होगा. मुझे इसमे जो सदेश समझ आया वो यह है की माली को पौधे लके हिसाब से जगह देनी चाहिये वरना पौधा क्यो जिम्मेदार होने लगा नाश का. आज कल घर, दफ्तर सब जगह यही समस्या है
www.yatishjain.com

Yatish Jain said...

पर ये भी तो हो सकता है-
वक्त ने अपना खेला खेला
गमले से जडो को बाहर ढकेला
उसने अपनी खुद जगह बनाई
सब लोगो को दी फिर छाई
विस्तार मे पढे http://qatraqatra.blogspot.com/2007/09/blog-post_03.html