फ़ाईलें चलती हैं। उनकी अपनी चाल होती है। कई बार वो तेज़ी से चलती हैं। कई बार बहुत स्लो। इतनी कि एक टेबल से बगल वाली टेबल तक पहुंचने में दिनों लग जाते हैं। एक महकमे से दूसरे महकमे तक पहुंचने में तो महीनों। जिस मक़सद से फ़ाईल चली हो उसे पूरा होने में तो कई बार ज़िंदगी भी खप जाती है। जिसके लिए उस फ़ाईल को चलना होता है वो चल बसता है पर फ़ाईल नहीं चल पाती।
पदोन्नति की फ़ाईल। पुरस्कृत करने की फ़ाईल। तबादले की फाईल। नौकरी की फ़ाईल। कोर्ट-कचहरी की फ़ाईल। मुआवज़े की फ़ाईल। पेंशन की फ़ाईल। सरकारी लोन की फ़ाईल। जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र की भी फ़ाईल। अस्पताल में दाख़िले की फ़ाईल। डिस्चार्ज होने की फ़ाईल। मंत्रालय की फ़ाईल। सरकारी ख़रीद फ़रोख्त की फाईल। बोफोर्स और डेनेल आर्म्स डील की फाईल। केस की फ़ाईल। सीबीआई की जांच की फ़ाईल।
फ़ाईलें तमाम तरह की होतीं हैं। कईं फ़ाईलें एक साथ चलती हैं। उनमें कईयों से हमारा सीधा सरोकार होता है। कईयों से पाला नहीं पड़ा होता है। जिनसे पड़ता है उन्हीं के बारे में समझ में आती है। पहले तो गैस और टेलिफोन कनेक्शन की भी फ़ाईलें चला करती थीं। बिजली मीटर लगाने की फ़ाईल। इन फ़ाईलों की तादाद घटी है क्योंकि अब फ़ाईलों की जगह 'मेलें' चलने लगी हैं। वो ख़ासतौर पर प्राईवेट दफ्तरों। यहां फ़ाईलें आगे नहीं बढ़तीं। यहां मेल फार्वर्ड होतीं हैं। इसके अपने गुण दोष हैं। कई बार पेंडिग बॅाक्स में डाल दी जाती हैं। शो ऐज़ अनरेड। कई बार तुरंत फार्वर्ड होती हैं। फ़ाईल लाने ले जाने वाले पिउन की भी ज़रुरत नहीं होती। बस मेल भेजना होता है। भेज कर बार इतल्ला भी करना होता है। 'डिड यू सी माई मेल। आई हैव जस्ट सेंट टू यू।' मेल पर सारा काम होता है। दूसरों का किया भी अपने नाम होता है। कुछ इसे मेल का खेल कहते हैं।
मेल को छोड़िए। उस संसार पर बात और कभी। अभी हम बात कर रहे हैं फ़ाईलों की। फ़ाईल किस चाल से चलती हैं ये फ़ाईल चलाने वालों की चरित्र पर डिपेंड करता है। फ़ाईलों की स्पीड घटाने-बढ़ाने के पीछे इनकी कुछ अपनी चालें होती हैं। कई बार वो चाल सीधे समझ में आ जाती है। कई बार घुमाफिरा बतायी जाती है। एक किरानी दूसरे के पास भेजता है। दूसरा तीसरे के पास। तीसरा फिर पहले के पास। इस चक्कर में कई ऋतुचक्र निकल जाती हैं।
फ़ाईलों को आगे बढ़ने के लिए चढ़ावे का बड़ा चक्कर है। क्लर्क स्तर पर ये चक्कर 10 से लेकर 10,000 तक का.... कुछ भी हो सकता है। इसमें बिचौलियों का भी बड़ा रोल होता है। जो फ़ाईल आपके जूते घिसने से आगे नहीं बढ़ती...इन बिचौलिए को बीच में लाते ही बढ़ जाती है। ये बड़े एक्सपर्ट होते हैं। किस बात की फ़ाईल है या किस अफ़सर के पास फ़ाईल है ये जाना नहीं कि तुंरत बड़बड़ा देते हैं। कह देते हैं कि 'जानता हूं उसे.... बड़ा काईयां हैं। बिना लिए दिए मानेगा नहीं। आप देख लीजिए क्या कर सकते हैं।'
फ़ाईलें छोटी और बड़ी भी होती हैं। बड़े लेबल की फ़ाईल पर चक्कर भी बड़ा होता है। वहां लेबल आफ इंटेरेस्ट अलग होता है। अंबानी के सेज़ की फाईल मुलायम बढाएं तो अलग बात होती है। मायावती रोके तो अलग। फिर मायावती भी फ़ाईल आगे बढ़वा दें तो कहानी बदल चुकी होती है। कुछ भी हो पर टाटा-बिड़ला जैसे पूंजीपतियों की फ़ाईलें कभी रुकती नहीं। उनकी फ़ाईलों की कांपियां भी कई होती हैं। एक अटकी हैं तो दूसरी चल पड़ती हैं। बंगाल में अटकती है तो हरियाणा में आगे बढ़ जाती है। सरकार बदलने के साथ कई बार फ़ाईलें खोली और बंद भी की जाती हैं। अपनो की बंद की... राजनीतिक विरोधियों की खोल ली।
'फक्करों' की फ़ाईल की तस्वीर अलग होती है। फ़ाईल आगे बढ़ने से उसकी ज़िंदगी बंधी होती है। और जहां किसी तरह का बंधन हो वहां फ़ाईल तेज़ी से कैसे मूव कर सकती है। वो धूल खाती है। वो वसूली मांगती है। नहीं मिलने पर वो गुम जाती है। वो ढ़ूंढ़ने पर भी नहीं मिलती है। मिलती है तो उस पर बड़े बाबू के दस्तख़्त नहीं हुए होते। 'फ़ाईल अभी नहीं देखी है.... फ़ाईल मेरे पास नहीं आयी है... पता करो फ़ाईल कहां है...' जैसे जवाब मिलते हैं। जबकि फ़ाईल वहीं कहीं होती है। वहीं अफ़सर दबा के बैठा होता है।
तो फ़ाईलें दबती भी हैं। पूरी नहीं सही तो उसमें से कुछ रिकार्ड तो ग़ायब हो ही जाते हैं। कई बार तो दफ्तरों में आग लगती है और फ़ाईलें जल जाती हैं। कुछ बचता ही नहीं। क्या कर लोगे।
Monday, July 16, 2007
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1 comment:
उमाशंकरजीं नमस्कार,
हमारी कुछ फ़ाइल भी दबी हुई हैं, आप फाइलों को देखते हैं मुझे ये यकीन हैं। कभी वक़्त मिले तो हमारी फिलेभी देखियेगा।
INDIA GAZE http://indiagaze.blogspot.com/Bhoole Bisre http://oldandlost.blogspot.com/क़तरा क़तराQatra-Qatra http://qatraqatra.blogspot.com/Kuch Ankahi Si http://ankahisi.blogspot.com/Escaping the Death http://snblast.blogspot.com/Ye Meri Life Hai http://yatishlife.blogspot.com/
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