Wednesday, July 4, 2007

मुझे नहीं रहना अविनाश के 'मोहल्ले' में

प्रिय अविनाश भाई,

'मोहल्ला' पर मेरे जो भी लेख हैं (उमाशंकर सिंह का कोना) उसे तुंरत प्रभाव से हटा दो । साथ ही मेरे ब्लाग का लिंक (उमाशंकर सिंह... सच की वादी) भी। वजह अगर ज़रूरी हुआ तो ज़रुर बताउंगा।

शुक्रिया
उमाशंकर सिंह

14 comments:

Reyaz-ul-haque said...

क्या हुआ भई? हांडी क्यों लडी़?

Arun Arora said...

ठंडा ठंडा सोच के ठंडा पानी पीव
गर्मा गर्म खाई के मत जलावै जीभ:)
:)

Udan Tashtari said...

मगर अदरवाईज लिखते रहना भाई :)

debashish said...

भैया ईमेल कर के बता देते अविनाश को ;) ई तो सगरफे संसार को ब्राडकास्ट हुई गवा :)

Anonymous said...

नहीं हटाऊंगा, क्‍या कर लोगे? मुकदमा करोगे?

Neelima said...

यह तो संवाद का तरीका नहीं न है ! अपनी बात तो रखिए सामने ;)

Anonymous said...

उमाशंकर जी;
शब्द एक बार आपने दे दिये वे आपको वापिस कैसे मिलेंगे?

क्या आप किसी पत्रिका में रचना छपवा कर अनछपी कर सकते हैं?

क्या आप टीवी पर एक प्रसारण कर के अप्रसारित कर सकते हैं?

छोड़िये इस मुद्दे को, हम आपके अगले लेख का इन्तजार कर रहे हैं.

Anonymous said...

अरे!
अपने यहाँ भी नेता लोग आ गये, या फ़िर घाघ नेता लोगों की आत्मा ने वास कर लिया है???

ये क्या बात हुई, चाहे जो वक्तव्य दे दो, वह भी एकदम खुल्लम्खुल्ले, प्रेस कांफ़्रेंस बुला के, और आखिरी में कह दो कि मेरी बात को गलत तरीके से पेश किया गया, तोड़मोड़ कर बताया गया. फ़लाना ढिकाना...!!

खैर भैया, चलो बहुत देर हो गई, अब खण्डन करो नाऽऽऽऽऽ...!!! :)

Anonymous said...

T R P TRP T R P

T R P

TRP
T R P

Admin said...

इसे कहते हैं हिटस पाने का शानदार तरीका। वॊ कहते हैं ना कि ना हींग लगे ला फिटकरी रंग चॊखा ही हॊए|

सुनील डॊगरा जालिम
+91-98918-79501

Monika said...

patrakaar jagaat ki do hastiyon ka is traha sarvjanik munch par jhagadna kya unhe shobha deta hai aur kya ye is jagat ke liye shubh sanket hai.

ek aur baat jannaa chahti hoon, aapke blog par hindi me likhna chahti hoon, kaise karoon

उमाशंकर सिंह said...

मोनिका जी,

लड़ाई अगर वैचारिक हो और व्यापक परिपेक्ष्य वाला हो तो सार्वजनिक तौर पर भी लड़ी जानी चाहिए। व्यक्तिगत समस्याओं की लड़ाई बंद कोठरी में हो तो बेहतर है। खैर,
आप चाहें तो अपना हिंदी में लिखा मुझे ईमेल कर सकती हैं। मेरा ईमेल आईडी है

umashankarsing@gmail.com

आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

शुक्रिया
उमाशंकर सिंह

Monika said...

jawaab ke liye shkriya shankar g
lekin kahna to avinaash g ka bhi sahi hai. gaali hamaari rasmo me hai, hamaari kasmo me hai, hamaari bhasha me hai, hamaari boli me hai
tab aap ise saahitya se kaise alag kar sakte hai.
ya aap ye kahna chahte hai ki jo PARISHKRIT hai, vahi saahitya hai

उमाशंकर सिंह said...
This comment has been removed by the author.