स्मृतियों के मरुप्रदेश में
आत्मिक मित्र की तलाश।
कई मुखाकृतियां...।
निज कर्मों में लिप्त सभी।
मृगमरीचिका।
तुम।
एक सुखद अनुभूति।
संतप्त हृदय में
एक सुसीत सी छवि।
कोई घनिष्ठता नहीं,
संभवत:
मित्रता भी नहीं।
तथापि
मन मस्तिष्क में
प्रतिध्वनित,
चंद शब्द।
विरल मिलन के
कुछ
अविस्मरणीय क्षण।
सूक्ष्म आत्मिक बंधन में
आबद्ध।
तुम,
सदा... सर्वदा...!
Wednesday, June 27, 2007
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5 comments:
शीतल मनोभावों की शानदार कविता। मन को छू गई, मन के भीतर छांकने-कुरेदने को मजबूर कर गई।
Uma shankar ji,
manav man ke komal bhavnaon ko bade hi sundar tarike se prastut kiya hai aapne.likhte rahiye.
mere blog ko shaamil karne ke liye dhanyawaad.
ek nayi kavita,(agae wo kavita jaisee lagti hai )likhi hai,agar apni pratikriya de saken to aabhari rahungi.
http://ghoomta aaina.blogspot.com
bahot khub mere dost " eksacchai " ki team ki aur se thank's.....
"eksacchai.blogspot.com"
bahot achi kavita hai. nice one.
very good. nice one. shandar kavita hai.
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