Friday, June 1, 2007

चल मेरे संग बिहार तू!

बिहार की तरफ चलते हुए अचानक अपनी एक पुरानी तुकबंदी याद आ गई। इसे अक्सर मैं दिल्ली में मुश्किलों में घिरे, परेशान यार-दोस्तों-जानकारों को सुना कर हंसाने की कोशिश करता हूं। आज आप सबों के साथ बांट रहा हूं...

दुर्गम्य पथ के क्लांत पथिक मत शून्य को निहार तू
दिल्ली में परेशान हैं तो चल मेरे संग बिहार तू।

कुछ कर गुज़रने की ख़्वाहिश ले आया तुम्हें इस शहर में
यहां दर दर भटका तू आठों पहर में

महानगर है देता है दर्द हमेशा
फरेब यहां हर किसी का है पेशा

इससे पहले कि तू भी बन जाए इनके जैसा
अपनी जड़ों को पहचान... हालात से ख़ुद को उबार तू

दिल्ली में परेशान हैं तो चल मेरे संग बिहार तू

मैनेज करना तूने बेशक सीखा हो
पर सीख सका ना चाटुकारिता

जहां मिलानी थी हां में हां
तू खोल बैठ गया गीता

आदर्श भरी बातों से कर चुका अपना बंटाधार तू
मत कर और टाईम खोटा असलियत को स्वीकार तू

दिल्ली में परेशान है तो मेरे संग बिहार तू

यूं तो ये प्रदेश भी रहा है सदियों से बीमार
पर लालू जा चुके और आए हैं नीतीश कुमार

दावा है बदल देगें तस्वीर
चला के अपने तीर

जंगलराज के ख़ौफ से मत अपना मन मार तू
उम्मीदों को दे एक नया आकार तू

दिल्ली में परेशान है तो चल मेरे संग बिहार तू

कहते हैं यहां गुंडागर्दी है... करप्शन है... डूब जाती है नैय्या
लेकिन यहां के बड़े बदमाश भी दिल्ली में कहलाते हैं छुटभैय्या

अपने संस्कार को बचा... मत कर उस लाईन को अख़्तियार तू
नहीं तो मौक़े तलाशता पहुंच जाएगा तिहाड़ तू

दिल्ली में परेशान है तो चल मेरे संग बिहार तू


उम्मीद है आप सब भी मुस्कुरा रहे होगें। लौट के मिलता हूं।

शुक्रिया

8 comments:

संजय बेंगाणी said...

हाँ भई मुस्कुरा दिये.

Arun Arora said...

दिल्ली वालो को ही पुकारा है अच्छा है काहे से संजय भाइ बैठे है अहमदाबाद मे और मुस्कुरा रहे है कि बच गये,भाइ हम तो तैयार थे,पर हमे तुमने पुकारा ही नही हम हरियाणा मे है और तुम सिर्फ़ दिल्ली वलो को ले जा रहे हो

उमाशंकर सिंह said...

अरूण जी, ट्रेन खुलने में अभी टाईम है। जिनको चलना है सब चलें। नई दिल्ली स्टेशन पर इंतज़ार करेगें।

Reetesh Gupta said...

इससे पहले कि तू भी बन जाए इनके जैसा
अपनी जड़ों को पहचान... हालात से ख़ुद को उबार तू

अच्छी लगी आपकी तुकबंदी....बधाई

अभिनव said...

बहुत बढ़िया है, पढ़कर आनंद आया।

Pushpa Tripathi said...

aapne sirf Delhi walon ka hi ahwaan kiya hai,Mumbai walon ke liye bhi kuch kijiye.kavita bahut achhi hai,bhawnaon ko hasya ke put me bakhoobi prastut kiya hai aapne.

उमाशंकर सिंह said...

पुष्पा जी, बिहार से लौट आया हूं। हालात बहुत ज़्यादा नहीं सुधरे हैं वहां। इसलिए फिलहाल दिल्ली वालों को भी चलने से मना कर रहा हूं। वहां की फिजां जब बदलेगी और मैं अगली बार जाऊंगा तो बिहार में दिलचस्पी रखने वाले तमाम लोगों को न्योता दूंगा।

आपको ये तुकबंदी अच्छी लगी इसके लिए शुक्रिया

उमाशंकर सिंह said...
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