Wednesday, June 20, 2007

कविताएं जन्म ले रहीं हैं...

मेरे मस्तिष्क में
कविताएं जन्म ले रहीं हैं
मेरे अनुभव-अनुभूतियों को
शब्द-रुप दे रहीं हैं।

मेरी कविताएं
मेरे अनुभव की तरह व्यापकता लिए हुईं हैं,
ये कहीं मृतप्राय: हैं...
तो कहीं जीवंतता लिए हुईं हैं।

ये शब्द सामर्थ्य
मेरे अनुभवों ने ही मुझे प्रदत्त किए हैं
इन्हें कमलबद्ध करने को भी
उन्होंने ही उद्यत किए हैं।

मेरी भावना ही मेरी लेखनी की आत्मा है
जो कभी पुलकित
तो कभी मर्माहित हुईं हैं,

अतएव,
दोनों ही मेरी कविता में समाहित हुईं हैं।
मेरी ईच्छाएं
चंद पूरित...,
चंद अभी दमित हैं

अभिलाषाएं
कुछ सूख चुकीं,
कुछ अभी हरित हैं

पर मेरा विश्वास
अभी भी,
अपेक्षाओं के साथ खड़ा है,
इसलिए तो मेरे संवेदन ने
शब्द रुप धरा है!

5 comments:

Reetesh Gupta said...

मेरी कविताएं
मेरे अनुभव की तरह व्यापकता लिए हुईं हैं,
ये कहीं मृतप्राय: हैं...
तो कहीं जीवंतता लिए हुईं हैं।

अच्छा लगा पढ़कर ...अच्छी कविता है....बधाई

Anonymous said...

बढ़िया!

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया कविता के लिए बधाई!!
शुक्रिया!!

Pushpa Tripathi said...

apni bhawnaon ko jis prakar is kavita ke madhyam se abhivyakti di hai,wo behtareen hai.

Yatish Jain said...

बहुत बढ़िया