बचपन में हुई ग़लतियों का ख़ामियाज़ा अक्सर जवानी में उठाना पड़ता है। मुझे भी पड़ा है। जबकि बचपन में मैंने ऐसी कोई ग़लती भी नहीं की। ये तो मेरे दादाजी थे जिन्होंने मेरा नाम उमाशंकर रख दिया। इस नाम के साथ बड़ा होता गया। ग़लती तब भी नहीं की। बस ग़लती एक हुई। एक बार रेल टिकट कटाने ख़ुद न जाकर अपने किसी जानकार को भेज दिया। ग़लती उससे भी नहीं हुई। वो टिकट लेकर आ गया।
मैं खुशी-खुशी ट्रेन में बैठ गया। रास्ते में पता नहीं कहां टीटीई आया। मैं ऊपर की बर्थ पर सो रहा था। उसने पहले बहुत आवाज़ दी होगी। मैं चादर तान के सोता रहा। वो और तेज़ चिल्लाया। मैं उठ बैठा। उसने तल्ख होकर कहा टिकट दिखाइए। मैने दिखा दिया। बोला इस टिकट पर आप कैसे सफर कर रहे हैं। मैंने ताज्जुब से पूछा क्यों? फिर क्या हवाई जहाज के टिकट पर सफ़र करें। उसने पलटवार किया। आप हवाई जहाज की टिकट पर बेशक ना करें लेकिन किसी महिला की टिकट पर भी सफ़र ना करें। पढ़े लिखे लगते हैं। शोभा नहीं देता।
मेरा माथा ठनका। मैंने कहा पर टिकट तो मेरी ही है। चार्ट में देख लीजिए। उमाशंकर सिंह लिखा होगा। चेकर ने फिर मुझ पर शक की निगाह मारी। बोला क्यों बहस कर रहे हैं। ये बर्थ उमा सिंह के नाम पर है और चार्ट में साफ साफ लिखा है 'एफ' 30। यानि तीस साल की महिला उमा सिंह का टिकट है ये।
मुझे माजरा समझते देर नहीं लगा। मैने अपना आईकार्ड वाईकार्ड निकाला। पर वो देखने को तैयार ही नहीं हुआ। टिकट में सेक्स के खाने में 'मेल' के 'एम' की जगह 'फीमेल' का 'एफ' लिखा जाना मेरे लिए बड़ी समस्या बन गयी। ग़ाज़ियाबाद के आसपास से ट्रेन में गुज़रते हुए दीवारों पर कई तरह की सेक्स समस्याओं के बारे में पढ़ा था। पर ये तो बिल्कुल नई तरह की सेक्स समस्या थी। इलाज़ के लिए कोई ताकतवाला ही चाहिए था... रेलवे का कोई बड़ा अधिकारी। पर समझ नहीं आया किसे फोन करुं। इस मर्ज की कहां से दवा लाऊं। '28 रैगरपुरा' में भी शायद ही मिले।
समझाने की कोशिश की कि ग़लती रेलवे की है। जिसने टिकट काटा उसने कम्प्यूटर में ग़लत लिख दिया होगा। शायद मेरे लंबे नाम को थोड़ा छोटा करने के लिए। जेनेरली मेरे नाम को या तो 'यू एस सिंह' कर देते हैं या फिर 'उमाशंकर' लिख कर ही छोड़ देते हैं। सिंह नहीं लगाते। पर उमा सिंह तो मेरे लिए भी नया नाम था। रिजर्वेशन फार्म मैंने अपने हाथों से ही भर जानकार को दिया था। सो यहां भी ग़लती की गुंजाइश कम होगी। तो जब मैंने ऐसी कोई ग़लती नहीं की तो मेरा क्या क़सूर। किसी और की ग़लती की सज़ा मुझे ना दें। ये टिकट मेरी ही है। तब तक एक दो सहयात्री मेरे फेवर में आए गए थे। उन्होने टीटीई को समझाया कि ये जब से चढ़े हैं मेल ही चढ़े हैं। फीमेल नहीं। आप मान जाईए। टीटीई साहब मुश्किल से माने।
सेक्स को लेकर मेरी ये समस्या एकाध मौक़ों पर और हुई है। आगे ना हो इसलिए लालू जी, आपसे अनुरोध है। आप रेल मंत्री हैं। आपसे ज़्यादा 'ताकतवाला' इन दिनों कोई नज़र नहीं आता। आप इस तरह की सेक्स-समस्या से ग्रसित यात्रियों को बेशक ना कहते हों कि 'मिल तो लें'। पर मैं सोचता हूं कि 'मिल ही लूं'। सेक्स से जुड़ी मेरी इस समस्या को आप ही दूर कर सकते हैं। ऐसी समस्या कई और यात्रियों के साथ भी हुई हो सकतीं हैं। अभी भी हो रही हो सकती हैं। ऐसी समस्या ना हो इसके लिए आप कम्प्यूटर से टिकट काटने वालों से थोड़ी सावधानी बरतने को कहें। इसमें शक नहीं कि वो बहुत मेहनत करते हैं। पर ग़लती की गुंजाइश ना छोड़ों तो ऐसी 'लोकलाज' वाली समस्या से हम बच जाएगें। नहीं तो दुनिया तो बाद में, पहले आपके टीटीई ही हमें नहीं छोड़ेगें। हा हा हा!
हां, टिकट कटाने वाले भी काउंटर छोड़ने के पहले टिकट की डीटेल और पैसे का हिसाब मिला लें।
शुभ यात्रा
Friday, June 22, 2007
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16 comments:
रेलवे में सफ़र किये कई साल हो गये हैं लेकिन जहाँ तक याद है आपकी टिकट पर भी आपकी उम्र और M/F लिखा होता है । शायद आपको यात्रा करने से पहले दिख लेना चाहिये था ।
खैर जो भी हुआ, इसी बहाने एक चटपटी पोस्ट तो पढने को मिली :-)
साभार,
नीरज
अच्छा लिखा भईया। सेकस के चक्कर में सारा जमाना उलिझा है। और बिन दिक्कत इहे बदलि जाए तो मामला चकाचक। हमहूं एक बार ऐसे ही फेरा में पड़े रहे। पर सकुशन बचि गए। शुक्र है टीटीई साहब पिएं रहे। सो बूझौनी बुझा दिए कि गड़बड़ छपाई के है।
मैं तो केवल यह देखने आ गया था कि हमारे माननीय मंत्री जी को फुर्सत कैसे मिल गयी खानदानी शफाखाना खोलने की.
पर आपकी प्रॉबलम तकनीकी है और आपने टिकट नहीं देखा - सो गलती भी आपकी. माननीय मंत्री जी को न रगेदें :)
नीरज भाई, लगता है आपने सीरियसली ले लिया। मैं तो इस मज़ाक के ज़रिए उन लोगों की समस्या उठाने की कोशिश कर रहा हूं जिनके साथ वाकई ऐसा होता। थोड़ा सोचा और लिख दिया। शुक्र है
आपको पसंद तो आया। शुक्रिया
भव्य का भी धन्यवाद
उमाशंकर सिंह
उमा/शंकर जी अभी भी वक्त है समय से सुधार अच्छा रहता है,अब देश मे ही सारी सुविधाये उपलब्ध है
तुरन्त निर्णय लेकर एक चीज दो बदलवा ही लो सेक्स या नाम...:)काहे रोज रोज के पंगो मे फ़स्ते हो :)
अऱण जी का सुझाव अच्छा है। पर दोनों से कुछ भी किया तो आप पहचान नहीं पाओगे। हा हा हा।
वैसे ज्ञानदत्त पांडेय जी को कहना चाहूंगा कि मैं मंत्री जी की खिंचाई हरगिज़ नहीं कर रहा। बस एक फक्शन में उनको जगह दी है।
आपके ब्लाग में दौड़ती इंजन की तस्वीर अच्छी लगी। आपके महकमे के मुखिया की गाड़ी ऐसे ही दौड़ती रहे।
शुक्रिया
लालू जी अपनै समस्या को दूर कर लेते तो उनके घर मा किरकिट टीम कैसन बनती उमा भैय्या!!
( ज्ञान दद्दा इ पढ़ लेंगे तो हमें डांटेंगे, कि हम माननीय मंत्री जी के लिए ऐसा काहे लिख रहे हैं)
बाकी पोस्ट बढ़िया रही "उमा जी"!
uma ji,
badhiya bahut hi badhiya uma ji is sambodhan se naraj mat hoiyega kuch bhi kahiye aapki is adabhot sex samasya ab rel vibhag ke liye bhi sex samasya ban gayi hogi.dekhate hai dr lalu esaka kaha tak nidan kar pate hai.
uma ji aapke sath-sath mai bhi khuda se dua karunga ki aapka ye rog jald thik ho jaye aur ye bimari kahi bhi na faile.
vivek gupta
उमा जी,
आपको उस कमबख्त टीटी की हवा निकाल देनी थी. आपको साबित कर देना था कि आप 'बॉबी' प्रजाति के हैं और आप अपने आप को महिला ही मानते हैं - पुरूष के शरीर में महिला. वो दुबारा किसी से उसका सेक्स पूछने की हिम्मत ही नहीं करता :(
मेरी 'सेक्स समस्या' को लेकर सहानुभूति प्रकट करने वाले सभी भाईयों का शुक्रिया। आप सबों को मज़ा आया सुन कर मैं धन्य हुआ।
पर जिन लोगों ने इसे वास्तविक घटना मान लिया है उनके लिए कहना चाहूंगा कि ये खुद पर हंस कर आपको हंसाने की कोशिश है। शायद इससे कोई सीख भी मिल सके। पर कृपया थोड़ी देर से लिए गंभीरता त्याग कर हंसे और हंसाएं।
शुक्रिया
उमाशंकर सिंह
अरे एकदम्मय फसकिलास लिखा है हो । अब किसी दिन हवाई जहाज़ की यात्रा का भी कोई अईसन किस्सा सुनाओ हो । हम इंतजार में हंय । अच्छा चलते हैं । हमको आपन टिकिटवा में एम एफ वाली जगह चेक करनी है ।
आनंद आ गया. लेकिन ये समझ में नहीं आया कि टीटी ने कैसे फोकट में छोड़ दिया.
उमा तो हम भी कहते हैं। मां की ध्वनि है। मगर इ
मरदूद टीटी का दिल तब भी नहीं पसीजा का जी। रैगरपुरा बाबा से असफल इलाज कराके लौटा होगा। तभी खिसियाया होगा।
ये दिक्कत आती है। उम्र गलत छप जाती है। पैंतालीस का पच्चीस हो जाता है। करें भी तो क्या करें। रेल है । इतना विशाल महकमा। फिर भी कई महकमों से बेहतर चलती है। लेट होती है मगर नजर तो आ जाती है। बाकी महकमों में तो भाई लोग सड़क ही गायब कर देते हैं
उमा जी व्यंग्य लिखा ठीक है। लेकिन है तो सच्ची घटना न। कुछ लोगों ने इसे वास्तविक देखा तो गलत नहीं है। ठीक है। मगर लालू जी कुछ कर दें तो अच्छा। वर्ना सेक्स चेंज की कोई तुरंता दवा रखनी होगी। मेल से फीमेल होने के लिए और जो फीमेल हैं उनके मेल होने के लिए। किस ट्रेन से जा रहे थे? एक्सप्रेस या मेल?
हा हा, मजेदार कहानी। ध्यान रखेंगे जी आगे से हम भी। :)
Uma shankar ji,itni badi samasya se nikal kar aane ke liye badhai.socha tha, Uma ji ke naam se aapko sambodhit karoon,phir socha BHARTIYA RAILWAY hai na.
blog halka phulka hote hue bhi bhari tha.is samasya par pathakon ka dhyan aakarshit karne ke liye dhanyawaad.
आनंद आ गया पढकर
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