प्रिय ब्लागर बंधुओं,
दिल की तमन्ना थी कि मुल्क के उस आधे हिस्से को देखूं जो १४ अगस्त १९४७ की रात पाकिस्तान बन गया. तमन्ना पूरी हो रही है. कल ही दिल्ली से लाहौर पहुँचा हूँ. अगले एक महीने तक पाकिस्तान में ही रहने का प्रोग्राम है. यहाँ जो कुछ भी देखूंगा... महसूस करूँगा... आप सबों को बताते रहने की कोशिश करूँगा.
कल रात जब लाहौर एअरपोर्ट से बाहर निकला ततो एक शख्स ने बड़े प्यार और जोश से पूछा... आप इंडिया से आए हैं? मैंने कहा... जी. जवाब सुनते ही उनके साथ खड़े दूसरे लोगों की आँखों में चमक सी आ गयी. उनके चेहरे के भाव से लगा कि अपने इंडियन भाइयों को देख यहाँ की आवाम किस तरह खुश होती है...जैसे उनका कोई बिछड़ा भाई उनसे मिला हो!
फिर मिलता हूँ
Saturday, October 27, 2007
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6 comments:
मेरी भी इच्छा है लाहौर जाने की। अटारी तक तो गया ही हूँ, वहाँ जा के सरहद ही बिल्कुल बेमानी लगती है। और वृत्तांत दीजिएगा।
khuda kare aapki pak ki yatra shubh ho..
Besabri se intezar rahegaa...
लाहौर से आप प्रतिदिन लेटर लिखें ताकि हम आपके अनुभवों को जान सकें !
बहुत बढ़िया उमा भाई!!
खूब लिखिएगा वहां के बारे में॥
हबीब तनवीर के नाटक " जिन लाहौर नई देख्या वो जन्म्याई नई" पे यकीन करें तो आपने तो जनम ले लिया अपन ने नई लिया अभी!!
ईर्ष्या हो रही है आपसे, उमाशंकर जी. खैर, हमारा दिल तो आपके दिल में है, वो ही घूम लेगा. हर पल की रिपोर्ट देना....दायित्व समझ कर .....वरना खटपट तय समझो. दिन में दो बार लिखो...कहो तो अपने संपर्क भेजूँ गर समय हो तो..अच्छे मित्र भावी हैं.
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