अनिल जी ने जानकारी दी है कि अपमानित हॉकी टीम भूख हड़ताल करेगी। भूखों के इस देश में हड़तालें पहले भी कम नहीं हुईं हैं। अब हॅाकी वाले भी कर लें। क्या फ़र्क पड़ता है। ब्लॅाग पर जानकारी आ गई यही बहुत। कहीं ख़बर ही नहीं आएगी कि ऐसी भी कोई भूख हड़ताल हो रही है। देखा नहीं आपने! ख़बरों में क्या छाया है। खुली बस पर भज्जी का भांगड़ा... युवराज का ठुमका...श्रीसंत की फ्लाईंग किस...छी छी राम राम मत करिए! इतनी बढ़िया ख़बर कि कैसे कोई हट जाए। जश्न से सीधा भूख पर उतर जाए। ' विजुअल जर्क' भी कोई चीज़ है या नहीं।
खैर छोड़िए टांग-खिंचाई। ये बताईये कि ये हॅाकी वाले हैं कौन? कौन जानता है इन्हें? अगर ये शाहरुख़ के चक दे इंडिया वाली लड़कियां हैं तो ले आईए हमारे यहां। अपना पेट काट के भी चाय पिलाएंगे। पर अगर आप वाकई में हॅाकी वाली किसी टीम की बात कर रहे हैं तो संभल जाईए। स्टिक हमारे यहां भी है! चलते देर ना लगेगी। कर्नाटक पुलिस के पास भी होगी। नीचे से मुड़ी ना सही...सीधी ही। पर पड़ती है तो लगती ज़ोर की है। इसलिए चाहे भूख हड़ताल करें पर पुलिस की लाठी-ताल से बचके।
फिर भी उनको भूख-हड़ताल करना ही है तो थोड़ा ठहर के करें। एक एशिया कप जीत लिया तो दिमाग चढ़ गया क्या। इधर क्रिकेट टीम को देखिए। कैसे टुर्नामेंट जीतते जीतते हारे। आख़िरकार एक हारते हारते जीत गए तो आप गए अपनी डफली लेकर विघ्न डालने। एक मूवी देखकर इतना चौड़े ना हों। पहले क्रिकेटरों की तरह दिखना सीखें.... चाहे जीत में हों या हार में... फिर बिकना भी शुरु हो जाएगें। जाईए आराम कीजिए। बढ़िया खेलने की कोशिश कीजिए। फिर जो मिलता है उसमें खुश रहना सीखिए। पड़ोसी की हरी उछाल वाली पिच देख कर अपनी बॅाल चमकाना छोड़िए!
Wednesday, September 26, 2007
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1 comment:
वाकई मुझे समझ में नहीं आता कि टीवी चैनलों ने भारतीय टीम की वापसी को क्यों इतना हाइप किया। क्यों वे बीसीसीआई और शरद पवार की चाल का मोहरा बन गए। बीसीसीआई को तो आईसीएल से अपने साम्राज्य को बचाना है, चैनलों को क्या मिलना है?
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