जितना 'इनडीसीप्लीन वे' में सोचोगे... उतनी ही क्रिएटीविटी आएगी। विज्ञापन के विशेषज्ञ अक्सर ऐसा सिद्धांत बताते हैं। उनका मतलब होता है लीक से हट कर... एक रास्ते पर सरपट भागते हुए नहीं... दिमाग के बंद कोनों का इस्तेमाल कर... लेकिन बेतरतीबी से नहीं...तरतीब से...एक संदेश के साथ! बेहतरीन माने जाने वाले इन विज्ञापनों को शायद इसी तरह बनाया गया है!
Wednesday, September 12, 2007
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3 comments:
sirf ek shabd.....Shandaar.jan kar accha laga ki aap bhi acche vigyapano par acchi aur paini nazar rakhte hain....bhaviyshya mein isssey ek shrankhla bana kar prastut karein.
बहुत ही बङिया. आप का कहना बिलकुल ठीक है कि ओरिजनल सोचने के लिये सीमाओ को हटाना होता हैं. इस तरह के पोस्ट जरुर लिखा करें.
sanjay sharma
www.sanjaysharma71.blogspot.com
पुनः एक से एक बेहतरीन प्रस्तुति. आभार.
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