भगवान श्रीकृष्ण ने अपने समय में बेहतरीन काम किए। मथुरा को कंस से मुक्ति दिलाई। कई और राक्षसों का खात्मा किया। प्रजा को संरक्षण दिया। हाई स्टैंडर सेट किए। इसलिए श्रीकृष्ण को भगवान मानने वालों को मेरा सलाम है। आख़िर उन्होने ने ही कर्ण की रथ के फंसे पहिए के वक्त मौक़ा निकलवाया। अर्जुन से तीर चलवाया। अभिमन्यु को चक्रव्यूह में घेर कर मारने की रणनीति समझायी। अश्वत्थामा के मरने की अफवाह फैला द्रोणाचार्य को निस्तेज किया। शिखंडी को आगे कर पितामह को ढ़ेर करवाया। पांडवों को जिताया। कौरवों को हराया। अगर वो अपना पाॅलिटिकली करेक्ट रोल न निभाते तो हो सकता है कि युद्ध की शक्ल कुछ और होती और महाभारत के बाद का भारत कुछ और। ये अलग बात है कि हज़ारों साल पहले पांडवों की जीत के बाद भी आज कौरवों का ही राज है। नुक्कड़ों...मोहल्लों में द्रौपदी का चीरहरण आज भी बदस्तूर जारी है। पर आज पांडव कहीं नज़र नहीं आते। या अगर वो हैं तो उनको आज के हालात नज़र नहीं आते।
हज़ारों साल पहले पांडव पांच थे। आबादी तेज़ी से बढ़ी है...ख़ासतौर पर हिंदुस्तान में। पांडवों बाद की उनकी पुश्तों ने एहतियात बरती हो तो भी चलिए... कम से कम उनके पुश्तों की संख्या 50 हज़ार तो होती...पांच करोड़ ना सही। पर आज तो 50 पांडव भी नज़र नहीं आते। फिर कृष्ण जी ने कैसे लोगों को शिक्षा दी? किन लोगों को घर्म के लिए लड़ना सिखाया? किनको जिताया? कहां गए धर्म की हानि के समय उसकी रक्षा के लिए पैदा होने का वादा करने वाले धर्मराज? ऐसा नहीं है कि मैं श्रीकृष्ण के अस्तित्व और उनके किए पर सवाल उठा रहा हूं। ऐसा करुं तो उनको मानने वाले मुझे पूतना के पास भेज देंगे। मैं तो सिर्फ आज की तारीख में उनको देखने की कोशिश कर रहा हूं। भगवान को याद कर रहा हूं। अपने आसपास उनको ढूंढ रहा हूं।
निराश होने की ज़रुरत नहीं। अधर्म पर धर्म की विजय के कर्ताधर्ता के रुप में ना सही, पर व्यक्तित्व के कई पहलुओं में वो आज भी नज़र आते हैं। जैसे कि चुरा कर मलाई खाने वाले आज भी हैं। औऱ वे अकेले नहीं हैं। करोड़ों की तादाद में हैं। प्राईवेट फार्म से लेकर सरकारी दफ्तर तक में हैं। टेबल के नीचे से मलाई खाते हैं। जब मिल जाता है तो अपने बाल-गोपाल में बांटना नहीं भूलते। ऊपर से नीचे तक 'कट' देते हैं। क्या मजाल कि आप उन पर सवाल उठा दें। अशोक मल्होत्रा जैसे जो पकड़े जाने के बाद कहते हैं...मैं नहीं माखन खायो... । कृष्ण दफ्तरों में भी होते हैं। किसको कैसे लंगड़ी लगानी है...किसको कैसे आगे बढ़ाना है...किसको प्रमोशन देना है किसको डिमोट करना है इस रोल को निभाने वाले कृष्ण। अपने अपने धर्मयुद्ध में लिप्त।
आज की चीरहरित होती स्त्रियों की साड़ी में बेशक श्रीकृष्ण ना समाएं। ना ही उसकी साड़ी को हज़ारों मीटर लंबी कर दें। पर गोपियों के साथ रासलीला की उनकी तरह मंशा पालने वालों की तादाद आज लाखों में है। करोड़ों में हैं। आज के कृष्ण नदी किनारे नहीं... स्वीमिंग पूल के आसपास होने की कोशिश करते हैं। या कॅालेज गेट और गर्ल्स स्कूल के आसपास की चाय की दुकानों पर होते हैं। या फिर बड़े बड़े मॅाल में खरीददारी में जुटी लड़कियों के पास मंडराते। बसों में महिलाओं की मज़बूरी की भीड़ के बीच भी उन्हें रासलीला करने की कोशिश करते हैं। ओछी हरकत करना नहीं भूलते। जिनको वे गोपियां मान लेते हैं वे अगर सचेत ना रहें तो उनके कपड़े उतार वो वृक्ष की डाल पर नहीं... अपने घर ही ले जाएं।
ग़रीब दोस्त सुदामा की झेंप मिटाने वाला कृष्ण भी आज कहीं नज़र नहीं आता। सुदामा कांख में चावल दबाए खड़ा रह जाता हो... कृष्ण को आॅफर नहीं कर पाता हो... पर उसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं। वैसे आज के कई सुदामा स्मार्ट हो गए हैं। कृष्ण बेशक मक्खन के दीवाने रहें हों... पर उन्होंने खुद कभी भैंस को दूहा हो ऐसी जानकारी नहीं मिलती। पर आज तो कृष्ण वही बनते हैं तो देश को दूह सकें। व्यवस्था को निचोड़ सकें।
आज पुराने कृष्ण की पूजा होती है। होनी चाहिए। मलाई खाने और गोपियों के साथ उनकी क्रीड़ा रासलीला है। लेकिन बाकी वही करते हैं तो कहते हैं कि कैरेक्टर ढीला है। ये क्या बात हुई! ज़माना बदल गया है। और बदले हुए ज़माने के ये भी तो पूजनीय हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
10 comments:
अहहा, मन की बात लिख दी। आपका लिखा पढ़कर सुधी समाज को बुद्धि आ जाए, तो क्या कहने। हमारे दिल को बड़ी तसल्ली मिलेगी।
बडे लोग कुछ भी करे उन्हे कुछ भी नही होता छोटा आदमी करे तो वो पकडा जाता है
http://qatraqatra.blogspot.com/
सच में आपने जो लिखा वो बिल्कुल सत्य है. लेख में निरन्तरता है. आैर लगातार पढ़ने पर बोरियत महसूस नही होती. धन्यवाद के पात्र है आप
सही लिखा है भाई!!
"अभिमन्यु की नाभि पर तीर चला कर ही उसे ख़त्म किया जा सकता है ये समझाया।"
ये अभिमन्यु वाली बात किसने बताई आपको, अभिमन्यु तो अर्जुन का पुत्र था, उसको काहे मरवाते कृष्ण और उसकी मृत्यू नाभि पर तीर लगने से नहीं हुई थी बल्कि चक्रव्यूह में कौरवों के द्वारा घेरकर मारा गया था।
नाभि पर तीर लगने से मृत्यू रावण की हुई थी और श्रीराम को इसका राज विभीषण ने बताया था।
ग़लती सुधारने के लिए शुक्रिया श्रीश।
देखो, हम तो ये जानते हैं कि यदि भारतीयों ने राम जी के चक्कर में न पड़कर कृष्ण का रास्ता चुना होता तो शायद संसार पर राज करते । कूटनीति भी कोई चीज होती है । पर भारत का तो हर पुरुष अपनी पत्नी में सीता ढूँढने के चक्कर में जीवन के हर पहलू में हार गया । समय आ गया है कि कृष्ण से कुछ सीखा जाए । जीवन को आनन्द से जीना तो वही जानते थे । फिर माखन मलाई तो खैर थी ही ।
घुघूती बासूती
बहुत बढिया !
उमा भाई,
सही लिखा है आपने। आज के इन मौकापरस्त कृष्णो कि जमात से बच कर रहना बड़ा ही मुश्किल काम है।
एक खास बात ------ मुझे लगता है कि शायद एक Word Mistake है ----आपने 16वी पंक्ति मे हिंदुस्तान को हिन्दुस्थान लिख डाला है। आपकी रिपोर्टिंग और आपके ब्लॉग को देखकर हमलोग हमेशा कुछ न कुछ सीखते है, ऐसे मे वो लफ्ज़ परेशान कर रहे है।
कामरान परवेज़
www.intajar.blogspot.com
कामरान भाई,
इतनी बारीक निगाह से पढ़ने के लिए शुक्रिया। दुरुस्त कर दिया है।
Post a Comment