Tuesday, September 4, 2007

जब सलमान की बहन से नज़रें मिलीं

खचाखच भरी अदालत। सलमान का मुकद्दमा। जोधपुर हाईकोर्ट में जस्टिस पवार की अदालत में तिल रखने की जगह नहीं। सलमान के स्थानीय दोस्त शिशुपाल और उसके कुछ लोगों के साथ किसी तरह अंदर पहुंची अलवीरा। हर किसी के लिए कौतुहल की पात्र। हर कोई उसे देख रहा था। अलग अलग तरह की नज़रें। सम्मान से देखने वाली भी और असम्मानजनक भी।

न चाहते हुए भी मेरी नज़रें उसकी तरफ उठ जाती थीं। मैं बार बार उसके भाव पढ़ने की कोशिश करता था। इसका ख्‍याल रखते हुए कि मेरी नज़रों से उसे कष्ट ना हो। वो हर सुनवाई पर अदालत आ रही थी। पहली बेंच ने जब मामला सुनने से इंकार किया तब भी और जब दूसरी बेंच में मामला अगले दिन के लिए लिस्ट हुआ तब भी। जेल में हरेक रात सलमान पर भारी पड़ रहा था। उससे ज़्यादा परिवारवालों के लिए भारी वक्त था। ये अलवीरा के चेहरे से साफ झलकता था। जैसे ही सलमान के वकीलों और अदालत के बीच बात शुरु होती थी, अलवीरा खड़ी हो जाती थी। हरेक बात सुनने की कोशिश करती थी। जब कोर्ट को दलील पसंद आती थी तो अलवीरा के चेहरे पर उम्मीद झलक आती थी। जब सुनवाई आगे के लिए टलती थी तो फिर वो भारी कदमों से अदालत के बाहर निकल आती थी। बाहर की भीड़ से बचाने के लिए सलमान का बॅाडी गार्ड शेरा इंतज़ार कर रहा होता था।

सलमान ने जो कुछ किया यहां उस पर नहीं विचारा जा रहा। जेल में बंद स्टार भाई के लिए बहन की भावनाओं को पढ़ने की कोशिश भर है ये। अदालत में मामला कई दिनों तक खिंचा। कई मौक़ों पर वो बिल्कुल मेरी कुर्सी की बगल वाली कुर्सी पर होती थी। तब उसके भावों को पढ़ना मुश्किल होता था। इसलिए मैं दूर दूर ही रहने की कोशिश करता था। उसकी हरेक गतिविधि को देखने की कोशिश करता था। कई बार उसके चेहरे पर बिल्कुल कोई भाव ही नहीं होता था। लेकिन आंखे नम सी होती थी। बीच बीच में अपने वकीलों से बात कर लिया करती थी। या मुंबई से साथ आए लोगों से। कभी उत्तेजना में नहीं देखा मैंने उसे। बिल्कुल शांत रहती थी। लेकिन मन में ज़रुर कई लहरें चलती होगीं। ख़ासतौर पर इसलिए भी कि इसी मामले के चार और अभियुक्तों को निचली अदालत ने बरी कर दिया। पांचवे को सेशन कोर्ट ने छोड़ दिया। जबकि उन सबके के खिलाफ भी वही परिस्थिजन्य साक्ष्य थे जिनके आधार पर सलमान को सज़ा सुनाई गई है। अभियोजन पक्ष ने उन पांचो को सज़ा दिलाने के लिए ऊपरी अदालत का दरवाज़ा भी नहीं खटखटाया। परिवारवालों को ये लगना स्वाभाविक है कि सिर्फ सलमान को जानबूझ कर निशाना बनाया गया है।

अलवीरा को पढ़ पाने की इसी कोशिश में एक बार मेरी नज़र उसकी नज़र से मिल गई। हुआ ये था कि अदालत ने मामले की सुनवाई अगले दिन के लिए तय कर दी थी। परिवार वाले जल्द से जल्द ज़मानत चाहते थे। तो जैसे ही मामला एक दिन के लिए औऱ आगे बढ़ा, मैंने अलवीरा की प्रतिक्रिया नोट करनी चाही। उसकी तरफ देखा तो इत्तेफाकन वो उसकी निगाह मुझसे टकरा गई। मैंने कभी उससे बात करने की कोशिश नहीं की थी। ना तो कैमरे पर और ना ही अदालत में। वो कुछ बोल पाने की हालत में नज़र नहीं आती थी। इसलिए। लेकिन जब नज़रें टकरा गईं तो मेरे मुंह से निकला सॅारी...। ये सॅारी मामला एक दिन और बढ़ जाने के लिए था। उसने मेरे सॅारी को समझा। पलकें झुका उसे एक्सेप्ट करने सा भाव दिया। फिर कुर्सी पर बैठ गई। लेकिन उसने नज़रें नहीं हटाई। उसकी नज़र में एक सवाल था। सवाल सलमान मामले मे हो रहे मीडिया ट्रायल का। उसने बोला कुछ नहीं। फिर मुझे ही संदेश देना पड़ा। 'वी आर विद यू।'

ये एक अदालत से दोषी करार सलमान का साथ देने जैसा संदेश नहीं था। बल्कि एक ऐसी बहन के लिए था जो अपने भाई की रिहाई के लिए अदालत के चक्कर काट रही थी। चाहती तो वो होटल के एसी कमरे में बैठी रह सकती थी। मुकद्दमा तो वकीलों को लड़ना था। पर उसकी नज़रें हमेशा जता रही थी कि वो सलमान के बाहर आने का रास्ता देख रही है। और वो उसे रिहा करा कर ही लौटी।

5 comments:

अनिल रघुराज said...

भाई भले ही स्टार हो, लेकिन बहन तो आम ही है। और दुख भी आम लोगों जैसा है। अच्छा है कि रिपोर्टर की नज़र से कहां कुछ छिपा रह पाता है।

Udan Tashtari said...

यह रिपोर्ट एक संवेदनशील हृदय के उदगार है जो उस बहन के भाव पढ़ पा रहे हैं जिसका भाई मुसीबतों से जुझ रहा है. सही या गलत काम के लिये यह तो कानून जाने मगर भाई तो हर हाल में भाई ही है बहना के लिये.

सुन्दर रिपोर्ट. बधाई.

Ramashankar said...

रिपोर्टर की यह भावना नसीहत दे गई. बुराई के साथ तो नहीं लेकिन बुराई के साथ भी कुछ और है जो निश्चित तौर पर कहने लायक होता है. आपने यह कह कर एक सही मैसेज दिया है.

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया रपट।अच्छा लगा इसे पढ़कर!

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म, सही!!

एक रिपोर्टर को सब देखना होता है, आप अपराधी को कवर करने गए हों लेकिन उसके परिजन तो अपराधी नही, परिजनों की भावनाओं को समझते हुए ही अपना कर्म करना होता है।
जो रिपोर्टर परिजनों की भावनाओं को समझ सके वही सही!!
और आपने समझा, काबिले-तारीफ़!!
अच्छा लगा बंधु!!