Monday, September 3, 2007

रवीश जी, मुझे भी जाना है स्वर्ग की सीढ़ी तक

(इन बेतुकी पंक्तियों को पढ़ने के पहले कस्बा पर रवीश का लिखा पत्रकारिता का स्वर्ग काल पढ़ें। तभी आप इसे पूरे कंटेक्स्ट में इसे समझ पाएंगे। शुक्रिया)

आदरणीय रवीश जी,

मुझे जलन हो रही है। आखिर मैं क्यों नहीं पहुंचा स्वर्ग की सीढ़ी तक। मुझे क्यों नहीं एसाईन किया जाता इस तरह के काम के लिए। क्यों बार बार नरक दिखाने के लिए ही कहा जाता है। वो भी वो नरक जो इसी धरती पर है...अपने इसी महान भारत देश में। अभी अभी बाॅडी बिल्डर सलमान खान जोधपुर जेल में नरक की ज़िंदगी बिता रहे थे। बिना एसी कूलर के। न बढ़िया खाना और ना छरहरी-भरीपूरी लड़कियों के साथ नाचना गाना... एक चिंकारा को गोली क्या मारी, रह रह कर ज़िंदगी नरक हो जाती है। उनकी नरक की ज़िंदगी को कवर करने मैं वहां था। सलमान में और मेरे में अंतर सिर्फ इतना था कि वो जेल में क़ैद थे और मैं जोधपुर शहर में। वो सात दिन रहे और मैं दस दिन। वो मुंबई लौटे तो हज़ारों समर्थकों की हौसलाअफ़ज़ाई ने उनके मिजाज़ को स्वर्ग सी अनुभूति दी होगी। पर मुझे स्वर्ग की सीढियां नसीब नहीं।

बात सिर्फ इसी नरक की नहीं है। पिछले दिनों बुंदेलखंड में था। पानी के बिना यहां लोगों की ज़िंदगी नरक है। कुंए और गढ्ढों में जमा कचरा पानी पीते हैं। पानी के लिए महिलाएं कई-कई किलोमीटर तक चलती हैं। हमें भी चलना पड़ा। उनकी नरक की ज़िंदगी जानने और दिखाना के लिए हमें नरक के दरवाज़े तक जाना पड़ा। पर क्या मुझ में इतनी क़ाबिलियत नहीं कि कोई मुझे भी स्वर्ग के मुहाने तक जाने दिया जाए।

यहां कब तक गोहाना के दलितों, विदर्भ के किसानों, झारखंड के आदिवासियों, सरकारी अस्पताल में दाखिल मरीज़ो ब्ला... ब्ला... ब्ला... की नरक सी ज़िंदगी दिखाते रहेंगे। क्या फायदा उसका। वो तो नरक में ही हैं और रहेंगे... सोच के बेतुकेपन से हमारी भी ज़िंदगी रह-रह कर नरक हो जाती है। एक नारकीय रिपोर्ट खत्म नहीं होती कि दूसरी आ जाती है। आखिर क्या हमने ठेका ले रखा है नारकीय चीज़ें दिखाने का। क्या सिर्फ यही पत्रकारिता है। नहीं। पत्रकारिता का स्वर्ग काल कुछ और है।

जिसके पास जो होता है उसका उसमें इंटरेस्ट कम हो जाता है। जिनकी नारकीय ज़िंदगी हम दिखाते रहते हैं, उनका खुद का उसे देखने में दिलचस्पी नहीं। वे ऊब चुके हैं उससे। वो ये देखना चाहते हैं कि किस तरह संजय दत्त भगवान की भक्ति कर जेल से बाहर आए और नरक में दुबारा नहीं जाने के लिए मंदिर मंदिर घूम रहे हैं। शायद वो सोचते हैं कि न्यूज़ चैनल पर ही सही, आस्था का प्रोग्राम देख कर उनकी ज़िंदगी भी नरक से निकल आएगी। स्वर्ग की सीढ़ी तो उनके लिए रामबाण है। पाॅजिटिव स्टोरी है। दिखाना चाहिए। उस सीढ़ी तक आने-जाने का खर्चा भी बताना चाहिए। कांवर लेकर तपती सड़क पर चलने वाले कई भक्त हैं जो कंबल ओढ़ कर वहां पहुंच जाएगें। हमारी स्टोरीज़ उनको नरक से नहीं निकाल पाती लेकिन इस एक कोशिश से वो स्वर्ग के सोपान तक पहुंच जाएंगे।

आपने बताया कि द़ौपदी ने डर के आपको फोन कर आॅफ द रिकार्ड बात की। मतलब कोई बाईट नहीं मिली। तो क्या हुआ। पैकेज तब भी बना सकते हैं। द़ौपदी से मिली जानकारी के आधार पर स्वर्ग का रीक्रिएशन कर तो दिखा ही सकते हैं। स्टिंग ठीक नहीं होगा, पर एक फीचर तो बना ही सकते हैं। एंकर आप ही करेंगे। वैसे भी अब तक आपने ज़िंदगी की इतनी तरह के नारकीय आस्पेक्ट को कवर कर लोगों तक पहुंचाया है कि आप भी थोड़ा चेंज चाहते होगें। मुझे जब तक मौक़ा मिले तब तक हो सकता है कि बहुत देर हो जाए। पर आपके पास अपना बजट है।

आप चाहें तो अपनी स्पेशल रिपोर्ट भी बना सकते हैं। स्वर्ग में मध्यम वर्ग है या नहीं। है तो किस हाल में है। लोन लेकर कार खरीद रहा है कि नहीं। यहां का सतपाल कहीं वहां जा कर सत्या पाॅल तो नहीं बन गया। वहां 'हैव और हैव नॅाट' के बीच का फर्क कितना है। क्या दलितों की सोसाईटी स्वर्ग में है या नहीं। बड़ा सवाल तो ये कि क्या किसी दलित को स्वर्ग में जगह मिली भी या नहीं। या धरती पर नरक काट काट कर गए को वहां भी नरक में धकेल दिया गया है। वहां रिजर्वेशन का क्या हाल है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है या सरकार के पास। सवाल बहुतेरे हैं। पर ठहरिए... इन सवालों पर रिपोर्ट करेंगे तो टाईप्ड लगेंगे। कुछ अलग तरह से करना होगा। स्वर्ग के उस प्रभामंडल को बनाए रखना होगा जिसकी वजह हर कोई स्वर्ग जाना चाहता है। ये जानते हुए की भी शरीर छोड़ने के बाद ही जा सकता है...लालच कम नहीं होती। 'धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है...यहीं है...यहीं है' को तो हम सबने कच्ची पक्की स्टोरीज़ कर कर के झुठला ही दिया है। तो, अब तो जो 'स्वर्ग है वो वहीं है...वहीं है...वहीं है...' और इसे बना रहने देने में ही भलाई है। स्वर्ग जाने की लालच रखने वालों की भी और उसकी सीढ़ियां ढुंढ़वाने वालों की भी।

एक बार सीढ़ी का पता चल गया है तो इंवेस्टिगेशन का आधा काम तो हो ही गया है ना। दूसरे की ख़बर टीप कर दिखाने में कोई हर्ज थोड़े ही है। शूट ना करना चाहें तो ट्रांसफर ले लेंगे। वैसे भी स्वर्ग की स्टोरी में रिसर्च की ज़रुरत नज़र नहीं आती। कुछ भी कह देंगे...दिखा देंगे, यहां लोग हाथों हाथ लेंगे। अभी तक के कामों की वजह से शायद ही किसी ने आपका आॅटोग्राफ मांगा हो। पर एक बार अगर आपने अपने अंदाज़ में स्वर्ग पर स्पेशल रिपोर्ट कर दी तो फिर आप रब और ईश के दूत के तौर पर देखे जाने लगेंगे। आपके नाम रवीश की नई व्याख्या होगी। ट्रैकिंग का शौक भी पूरा हो जाएगा। इनविजीबल इंडिया दिखाने के लिए हो सकता है कि पत्रकारिता का एक और पुरस्कार ही मिल जाए।

पर एक बात मत भूलिएगा। मुझे भी जाना है स्वर्ग की सीढ़ी तक!

(ये रचना रवीश के व्यंग्य का विस्तार मात्र है। समानता संयोग से हो सकती है। इसके लिए लेखक ज़िम्मेदार नहीं है। किसी भी विवाद का हल स्वर्ग की अदालत में होगा।)

5 comments:

Yatish Jain said...

मुझे नही लगता ऐसे स्वर्ग पहुचा जा सकता है, स्वर्ग जाने के लिये समाधान ज़रूरी है ना की यही से उठाई हुयी चीजो को यही दिखा देना जो की आज सब लोग कर रहे है और उन लोगो को चेताना जिन्हे इससे कोई फर्क नही पडता. देश को राजनीति के कुत्ते ने काटा है, कई बरस पहले जब मैने D Pharma किया था तब मुझे पडाया गया था कि कुत्ते के काटने की दवा उसकी लार से बनाई जाती है. समझने वाले को इशारा काफी है. स्वर्ग का रास्ता तो खुला है बस उसे ढूढना है...
आपने बहुत अच्छा लिखा है
http://yatishjain.blogspot.com/

RISHIKESH said...

Wah Sir...bahut achhe...maine ravish ji ka bhi lekh padha...aapne vistar diya aachha hai...
Aap jaise logo ko swarg ki sidhio ko dhundne ki zarurat nahi hai....IBN wale kabhi lucknow me pishach dundhte hai to kabhi jannat ki sair karte hai ..unhe jane dijiye par jab us reporter se miliyega to itna zarur puchh lijiyega ki kya wo aisa karna chahta tha ya wo bhi isi narkiy jeewan ko dikhana chahta hai...bas naukri k dar se sab kar raha hai....aur zarur btaiyega ki uska kya jawab tha.

Waise mai bhi aapse puchhne wala tha ki UP k Bundelkhand wali story k bare me..Maine aapse kai bar bat karna chaha jab aap CPM k office me UNPA k presidential election ko lekar jo press conference ko cover kar rahe the. Mai aapke bagal me kafi der tak khada rah lekin bol nahi paya...

RISHIKESH said...

Bahut Sahi Kaha ki log wo kyun dekhenge jo unke jeevan me ho raha hai...Lekin ye sab wo dekhte hai jo apni pareshaniyo ka samadhan na sochkar unhe bhoolna chahte hai..

Media ka kam unhi logo ko jagana hai lekin aaj adhiktar news channel Bhoot-pishach, kutte- billi-bandar, ek ghar me biwi ne kaise mara pati ko ye sab dikha rahe hai....News aise padhte hai jaise darana ho kisi ko....AAp jaise logo ko swarg k sidhio tak jane ki zaroorat nahi hai...yehi par us sidhi ko banana hai...
Ek bat mai aapse zaroor kahunga ki aap IBN wale us reporter se zaroor puchhiyega ki kya wo bhi sach me swarg ka dwar dikhana chahta tha ya naukari k sawal par sab karta hai...aur please zaroor btaiyega.
Aapse bhi bundelkhand wali story k bare me puchhna chahta tha..aapke bagal me me 15 20 minute tak khada raha lekin puchh nahi paya(UNPA k press conference k bad jab aap live dene wale the CPM k office k pas)

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया लिखा है उमा भाई

TV said...

ऐसे ही लिखते जाइये।