बड़ा शोर मचा रहा। मोदी...मोदी...मोदी। अब शांत होने लगा है। मतदान हो चुके हैं। नतीज़े का इंतज़ार है। और छटपटाहट भी। मोदी जीतेंगे या हार जाएंगें। गद्दी रहेगी या जाएगी। जनता ने तय कर दिया है। किसी को पता नहीं। पर अंदाज़ा सभी लगा रहे हैं। आप भी और हम भी।
मोदी हारे तो वो वाह-वाह करेंगे जो चाहते हैं कि मोदी हार जाए। ऐसे भी हैं जो कहेंगे देखो ये मेरा कमाल है। पर अगर मोदी जीते तो शायद वो ये नहीं स्वीकार पाएंगे कि देखो... ये मेरा किया धरा है! और मोदी मायावती से भी ज़्यादा तन कर मीडिया से मुखातिब हों तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। वैसे मोदी मीडिया और सोनिया दोनों के शुक्रगुज़ार होंगे। नहीं होगें तो ये उनकी कृतघ्नता होगी। आखिर इन्हीं दोनों ने आखिरी क्षणों में उनकी डूबती-उतरती सांसों को थामा। एक ने मौत का सौदागर कहा तो दूसरे ने इस सौदागर की दुकान सजाए रखी। वैसे ये मेरा व्यक्तिगत विचार है जिसे सबके सामने रख रहा हूं। ग़लत हूं तो सही बताइए।
बीजेपी के कई आला नेता आॅफ द रिकार्ड बातचीत में स्वीकारते हैं कि सोनिया ने अगर मौत का सौदागर नहीं कहा होता तो गुजरात में कमल मुरछा जाता। दरअसल मुसलमान के संहारक के रुप में मोदी इतनी बार दिखाए-पढ़ाए गए कि बात उन हिंदुओं के मन में भी बैठ गई जिन्हें शायद मोदी का बतौर मुख्यमंत्री काम पसंद नहीं आया। यहीं धर्मांधता ने अपना रंग दिखाया। विकास या विनाश के स्थानीय मुद्दे पीछे छूट गए। हिंदू-मुसलमान के बीच का सनातनी-तनातनी को फोकस कर लिया गया। खाली पेट भी जयश्री राम के नारे से खुश रहने वालों के इस देश में बस और क्या चाहिए। आधार तैयार हो गया वोट के पोलराईजेशन का।
अरे मोदी की सत्ता को अपनी मौत मरने देते। बयान आधारित कहानियों की जगह तथ्य आधारित बात करते। गुजरात में विकास नहीं हुआ है तो क्या यूपी और बिहार में हुआ है? और अगर वाकई नहीं हुआ है तो क्या सड़क पर पड़े गढ्ढे दिखाए आपने? क्या भुखमरी दिखा पाए? या फिर सूखे...अकाल में सरकार का नकारापन? नहीं ना? या दिखाया भी तो उसे मुद्दा बना नहीं परोस सके? परोसा तो वोटर क्यों उस थाल में मुंह मारते नज़र आए? नहीं। बस बहस में पड़े रहे। एजेंडा तय करते रहे। लगा इसी से हार तय कर देंगे। अच्छा होता कि मोदी को मुसलमान-विरोधी की बजाए हिंदू-विरोधी साबित कर पाते। शायद ये बेतुकापन ही असर कर जाता!
मोदी इस देश की संवैधानिक व्यवस्था के तहत ही मुख्यमंत्री हैं। क्यों हैं? मौत का सौदागर है तो कैसे बैठे हैं गद्दी पर? बताइए सोनिया जी। बदलिए संविधान। भेजिए इनको अंदर। केंद्र में सरकार आपकी है। खाली बयान देकर 10 जनपथ में मत बैठ जाईए। आपके इस एक बयान ने बड़ा खेल कर दिया लगता है। मोदी फिर आ रहे लगते हैं। एग्ज़िट पोल्स बता रहे हैं। बहुत घटा कर भी उनको 90 तो दिया ही जा रहा है। अगर वो वाकई आ गए तो फिर पांच साल वही करेंगे जो वो चाहेंगे। तब क्या आपका ये बयान काम आएगा? उन मुसलमानों के जिनके घर उजड़ गए। जिनके अपने दंगों के शिकार हुए। आपका क्या। आप तो फिर अगली बार के इंतज़ार में बैठ जाएंगे।
आप मुझे मोदी-समर्थक कह सकते हैं। संघी होने का आरोप भी लगा सकते हैं। अगर मोदी के विरोध का मतलब मोदी के जीत की राह को आसान बनना है तो मैं वैसा संघी बनना पसंद करुंगा जो अपनी महत्ता दिखाने को ही सही...सही में मोदी को नीचे उतारना चाहता है।
फिलहाल तो मोदी की तरफ से सोनिया औऱ मीडिया को बधाई!
Thursday, December 20, 2007
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5 comments:
ठीक कहा भइया ...एक भाषण ने सारा खेल बिगाड़ कर रख दिया कांग्रेस का...लगता है गुजरात का इनका सलाहकार ठीक सलाह नहीं दे पाया। अच्छा लिखा है।
भाऊ मीडिया ने कहा की यहाँ की सड़के गाँवो तक में ठीक है, मगर ठीक सड़के ठीक नहीं!!! अब बोलो ऐसे बेतुके लोगों की बाते लोग कैसे सुनते...
सोनियाजी ने बहुत बड़ी गलती की है.
कहते हैं कि सोनिया ने ऐसा बयान इसलिए दिया क्योंकि कांग्रेस चाहती है कि गुजरात में मोदी ही जीतें ताकि उसका हौवा दिखाकर अगले लोकसभा चुनाव में वह मुस्लिम वोटों को बटोर सके।
एक बार फिर सोनिया की अपरिपक्वता दिख गयी। सोनिया की ये एक गलती, फिर पार्टी मे "फ़ॉलो हर हाइनैस’ की तर्ज पर दिए गए बयान दर्शाते है कि कांग्रेस मे किस हद तक हताशा थी। अगर सिर्फ़ बयानबाजी से ही चुनाव नही जीते जाते, ग्राउंड पर मेहनत भी करनी होती है। गुजरात मे कांग्रेस, सिर्फ़ सिर्फ़ बीजेपी की अंदरूनी कलह के चलते ही आस लगाय बैठी है, जैसे बिल्ली छींका टूटने और दूध गिरने का इंतजार करती है।
लेकिन एक बहुत बड़ा खतरा तो हुआ है, इस चुनाव को मोदी ने अपने बलबूते पर जीता है, कंही सफ़लता उनके सर चढकर ना बोले, बस इसी चीज का डर है। लेकिन उम्मीद है मोदी दूरदर्शिता का परिचय देंगे और अपने इरादों को थोड़े समय और स्थगित करेंगे।
ये है खरी खरी!!
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