शीर्षक पर ना जाएं। कुछ बातें प्रेडिक्शन और प्रोजेक्शन से परे होती हैं। विश्लेषण भी काम नहीं आता। ये इस मुल्क के लिए फिट बैठता है। हिंदुस्तानी हूं इसलिए कोई आरोप लगा सकता है कि दुर्भावना में ऐसा कह रहा हूं। लेकिन नहीं। पाकिस्तान में बिताए अपने अब तक के समय और अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। मेरी आज की समझ पर कल को हो सकता है मैं ही सबसे पहले सवाल उठाउं। लेकिन आज का सच यही है। कब किस पल क्या हो जाए पता ही नहीं चलता। वैसे आप सेंस करते रह सकते हैं। वैसा हो गया तो कह सकते हैं ऐसा होना ही था। नहीं हुआ तो कह दें 'ये मुल्क बहुत ही अनप्रेडिक्टेबल है' टाईप...जैसा कि मैं अभी कह रहा हूं।
मैं इस वक्त लाहौर के साफमा आफिस में बैठा ये पोस्ट लिख रहा हूं। ये सोचते हुए कि अब तक क्या जाना है इस मुल्क के बारे में। थोड़े शब्दों में अपनी बात रखना चाहूंगा। क्योंकि उससे ज़्यादा आपके पास वक्त ना हो। और मेरे शब्द बड़े सामान्य से हैं। जिसकी लाठी उसकी भैंस! जी हां। ये जुमला सबसे सटीक यहीं बैठता प्रतीत होता है। मार्शल लॅाज़ का सिलसिला... इमरजेंसी का थोपा जाना... चुनाव कराया जाना या टाल दिया जाना... बेनज़ीर का बाहर जाना और लौट आना... नवाज़ का लौट कर आने के बाद भी वापस सउदी अरब भेज दिया जाना और फिर ऐसी किसी डील का हो जाना जिसके तहत उनका पाकिस्तान में ख़ैरमकदम हो जाए.... बेनज़ीर का पीएम बनना तय होते होते मारा जाना... और गोली-धमाके में हुई मौत को हादसा करार देने की कोशिश किया जाना... चुनाव होते होते टाल दिया जाना... पता नहीं पहले और बाद के और कितनी नज़ीरें होगीं। और ये सब बताती हैं कि जिसकी लाठी उसकी भैंस! एयरपोर्ट के लिए निकलना है। वापसी है। फिर बात होती है।
Friday, January 4, 2008
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1 comment:
pakistan ka wahi hoga jo unhone 60 saalo tak karne ki koshish ki hai.
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