Wednesday, November 14, 2007

महंगाई मार रही पाकिस्तान को

कल अंडा खरीदने निकला. सोचा लाहौर में यहाँ के बाशिंदों की तरह खरीदारी की जाए. दिल्ली में अक्सर अंडा मैं ही खरीदता हूँ. उसी से महंगाई का अंदाजा लगाता हूँ. मसलन २० रूपये दर्जन से जब २४ रुपये दर्जन हो गया तो लगा महंगाई बढ़ गयी है. लेकिन फैजान जनरल स्टोर में तो पैर तले की ज़मीन ही खिसक गयी. अंडा ५० रूपये दर्ज़न! ६ अंडे लिए. वापस गेस्ट हॉउस पहुँचा तो स्टाफ हैरान. आपने अंडे क्यों खरीदे? क्या हम आपको ठीक से खाना नही देते? मैंने समझाया नहीं. ऐसी बात नहीं. कई दिनों से सुन रहा था कि पाकिस्तान में महंगाई बहुत बढ़ गयी है. सो आम ज़रूरत की चीजों का भाव देखना चाहता था.

इतना सुनते ही नवीद बोल पडा... सर.. महंगाई का मैं बताता हूँ. पिछले १८ दिनों से हम आपको बनी बनाई रोटी बाहर से मंगा कर खिला रहे थे. आज आपको पहली दफा गेस्ट हॉउस में ही बनी ताज़ा रोटी खिलाऊंगा. क्या करते. आटा मिल ही नही रहा था. आज मिला है. जो १२ रूपये किलो मिलता था २८ रूपये मिला है. कीमतें और तेज़ी से चढ़ रही है....

आज सुबह जैसे ही उठा.. इक स्टाफ ने बड़ी उत्सुकता से जानकारी दी. सर... आज अंडा ५७ रूपये दर्जन हो गया है!

8 comments:

Anonymous said...

अंधेर नगरी चौपट राजा।
वहां पर लोग सब कुछ बर्ताश्त कैसे कर लेते हैं? नेता भाग जाये तो कुछ नहीं, नेता वापिस आ जाये तो कुछ नहीं, मार्शल लॉ लग जाये तो कुछ नहीं। तख्ता पलट जाये तो कुछ नहीं।
क्या लोगों को किसी से कूछ उम्मीद नहीं है या वे जानते ही नहीं कि लोकतंत्र की हवा कैसी होती है?

Neelima said...

paakistan ko aur bhi bahuta kucha ke sath mahangai bhi mar rahi hai pataa na tha

aarsee said...

ये तो नया स्तर खुला
प्रंसग काफ़ी कुछ बतलाता है
साथ ही आपका तरीका भी मज़ेदार है।

Tarun said...

mehangai ka pata karne ka tareeqa bara juda laga.

उमाशंकर सिंह said...

जगदीश भाटिया जी, आपने अच्छे सवाल उठाये हैं. सह्यद इनका जवाब आपको मेरी पहले की लिखी पोस्ट 'खामोशी... तूफ़ान के पहले या बाद की' में मिल पाए.

http://valleyoftruth.blogspot.com/2007/11/blog-post_10.html

शुक्रिया

ravishndtv said...

क्या बात है मित्र, अंडे पर ही पाकिस्तान तौल रहे हो। बहुत अच्छा। काफी कुछ झलक तो मिल ही गई महंगाई के बहाने। खैरियत तो है

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

जगदीश भाटिया की टिप्पणी बिलकुल सही है. यही स्थिति धीरे-धीरे यहाँ भी आ रही है.

Rakesh Kumar Singh said...

मित्र अच्छा लिखे. महंगाई वहां ज़्यादा है मानते हैं. पर अपने ही लोकतंत्र में क्या कम है? इमरजेंसी में हमारी क्या हालत हुई थी, किताबों ने बताया, बुजुर्गों ने बताया ही था. आप स्वस्थ्य हैं न. वापसी कब तक होगी?