इमरजेंसी लगने के बाद की पहली सुबह की हमारी शुरुआत भारी पलकों से हुई. पूरी रात हम सोये नही थे. बार बार फ़ोन बजते रहे. किसी को हमारी तो किसी को इस मुल्क की चिंता सता रही है. मैंने रात को ही इम्तिआज़ आलम से बात की थी. पाकिस्तान में वो ही हमारे मेजबान हैं. हमारे कई साथी पत्रकार रात को ही लाहौर लौटना चाह रहे थे. कुछ फोलो-अप और इमरजेंसी के बाद पैदा होने वाले हालात को कवर करने लिए... तो कई सुरक्षा और घरवालों की चिंता की वजह से. लेकिन इम्तिआज़ आलम साहेब ने कहा कोई चिंता की बात नही. आप लोग अपना ट्रिप जारी रखें.
४ नवम्बर की सुबह साढ़े सात बजे हम नंदना का किला और प्राचीन विष्णु मन्दिर देखने निकले. पाकिस्तान के चकवाल और झेलम जिले के इस इलाके में हमारा अनुभव अद्वितीय रहा. क़रीब ६ घंटे की ट्रेकिंग के दौरान हम पहाडों में घूमे भी...भटक भी गए...क्योंकि कोई रास्ता नही था जिस ऊंचाई तक हमें जाना था वहाँ के लिए. एक साथी उस्मान पानी की कमी से बेहोश भी हो गया. खैर, अल-बरूनी ने जिस पहाडी पर बैठ कर धरती की परिधि मापी... हम वहाँ भी पहुंचे. ये अनुभव किसी और पोस्ट में. लेकिन हमारा सारा दिन ऐसी हालत में बीता कि सभी सभी एक दूसरे को याद दिलाते रहे कि ये असल में इमरजेंसी के हालात हैं!
शाम को हम लाहौर के लिए वापस चले. रास्ते भर हमारी नज़रें बदलाव तलाशती रही. इमरजेंसी के पहले और बाद के बदलाव. पर वो कहीं नज़र नही आ रहा था. लोग जो पहले बातें करते नज़र आते थे... वो अब फुसफुसाते नज़र आने लगे. लेकिन ये अभी तो नज़रों का धोखा है. इमरजेंसी लगाए जाने के बाद चीजों को देखने के नजरिये में फर्क आ जाना स्वाभाविक हैं. यहीं ज़रूरत बैलेंस मेंटेन करने की होती है... जो आप सोच लेते है और जैसा आपको लगने लगता है उसके, और जो वाकई में हो रहा होता है उसके बीच. कई बार आप सही होते हैं...कई बार आप बह जाते हैं. बहना मुनासिब नही.
रात क़रीब ८ बजे हूँ लाहौर पहुंचे. गाइड को छोड़ने के बाद हमें सीधे जिन्ना हॉस्पिटल जाना पडा. नेपाल से आयी पत्रकार रोजिना का बदन अकड़ने लगा था. उसे भर्ती करना पड़ा. यहाँ से निकल कर हम अपने ठौर पर पहुंचे. अपने उसी पुराने कमरे में मैंने ने नई निगाह मारी. हरेक चीज़ एक नए लुक में नज़र आ रही थी. जानकारी मिली कि पिछली रात ही यहाँ की एन्क्येरी हो चुकी है. उसके बाद इमरजेंसी की दूसरी रात कई तरह के ख्यालों में कटी.
Monday, November 12, 2007
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1 comment:
गज़ब है आपके लिये कितना बढिया अनुभव है, मार्शल लॉ का माहौल बयान करते रहिये,आपके माध्यम से हमें सच्ची तस्वीर मिल रही है.. जब लौटियेगा तो विस्तार से लिखियेगा....शुक्रिया सबको ये मौका नही मिलता पर आप उन गिने चुने पत्रकारो में हैं जो सबकुछ होते अपने सामने देख रहा है, मार्शल लॉ के बारे में हमने सुना और पढा है पर जो बिम्ब आप देख रहे है उसे ऐतिहासिक अनुभव की तरह हमें ज़रूर सुनाइये.
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