Thursday, November 8, 2007

इमरजेंसी की पहली रात

3 नवम्बर 2007

... रात के १० बज चुके हैं. लोगों की आंखों से नींद गायब है. इम्तिआज़ उल हक टीवी सुन कर नोट्स बना रहें हैं. उर्दू के कई मुश्किल अल्फ़ाज़ों का मतलब मैं उनसे पूछते जा रहा हूँ. माहौल बोझिल हो रहा है. मैं बाहर निकलता हूँ. ताज़ा ठंढी हवा के लिए. साथ में अफगानिस्तान के पत्रकार अली अहमद शेरानी हैं.

गेस्ट हॉउस के बाहर कुछ चेहरे हमारे चेहरों को झांकते नज़र आते हैं. शायद इस उत्सुकता में कि हमारे दिमाग में क्या चल रहा है. हम जल्द ही ऊपर गेस्ट हॉउस चले आते है. ११ बजने वाले हैं. जेन. मुशर्रफ का संबोधन होने वाला है. हम रिसेप्शन की जगह एक कमरे में हैं. इस मुल्क के कई लोग हमारे साथ बैठे हैं. जेन. मुशर्रफ का संबोधन थोड़ी देर से शुरू होता है. उन्होंने जो कहा और जिस तरह से कहा उससे पूरी दुनिया ने सुना.

साथ बैठे पाकिस्तानी उदासीन हैं. इस सब से बाहा निकलना चाहते है. शेरो-शायरी का दौर शुरू होता है. सुबह ४ बजे तक चलता है. सुबह ६ बजे फिर निकलना है. आधे घंटे की झपकी के बाद सभी फिर टूथ-ब्रश कर रहे हैं. पाकिस्तान में इमरजेंसी की ये हमारी सिर्फ़ पहली रात है. कई और आनी बाकी है.

3 comments:

aarsee said...

नमस्ते।
आपको एक हाटियन के जुड़ाव के सथ पढ़ना शुरु किया।
पर अब मामला जमता जा रहा है।
पाकिस्तान से जुड़ी बातें यूँ भी संवेदनशील होती हैं।
इस कारण रोमांच भी बना हुआ है।

Udan Tashtari said...

बढ़िया आँखो देखा हाल मिल रहा है. कमेन्ट्री चालू रखें.

अजित वडनेरकर said...

अच्छा चल रहा है । लौटने से पहले ये ज़रूर पता लगाएं और लिखें कि वहां देवनागरी के जरिये हिन्दी सीखने वाले कितने हैं। हिन्दी में लोगों की दिलचस्पी कैसी है। हिन्दोस्तानी को ज्यादा तरजीह है या हिन्दी को । उर्दू-हिन्दी को अलग भाषाएं मानते हैं या मां जाई या मौसेरी या पड़ोसन वगैरह वगैरह। एक दिलचस्प ज्ञानवर्धक टिप्पणी का इंतजार रहेगा। जबतक खुद हमें पाकिस्तान जाने का मौका नहीं मिलता इन कुछ जिज्ञासाओं का समाधान आपके ज़रिये चाहूंगा।