बचपन में क्यारियां लगाया करता था। तरह तरह के फूल होते थे उन क्यारियों में। गेंदा, गुलाब, रात की रानी, अरहूल... कई फूलों के नाम भूल गया हूं। हां कई पौधे ऐसे होते थे जो सिर्फ एक सीज़न चलते थे। उस फूल में खूशबू नहीं होती थी। बस देखने में सुंदर लगता था। खुरपी लेकर मैं क्यारियों को खूब सजाया करता था। पड़ोस में रहने वाले मित्तू और टूटू और गित्तू से हमारा खूब कंपीटीशन होता था। कई बार एक दूसरे पर पौधे चुरा लेने या फूल तोड़ लेने के आरोप प्रत्यारोप भी लगते थे। ख़ासतौर पर दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा या ऐसे ही किसी अवसर पर। अलसुबह चहारदीवारी फांद कर अंदर आने की आवाज़ आती थी। दूसरे मोहल्ले के लड़के भी फूल तोड़ भाग जाते थे। जिस पर शक होता था उससे खूब लड़ाई होती थी। फिर शाम को साथ खेलने लगते थे।
फूल की कहानी इसलिए सुना रहा हूं कि आज कम से कम बीस साल बाद गुलाब फूल लेने का मन हुआ। रास्ते में कही गुज़रते हुए। फूल की दूकान पर नज़र पड़ी तो पूछा, 'कैसे दे रहे हो भैय्या गुलाब'। दूकानदार बोला, 'बीस का'। गुलाब भी सूखा सा ही था। वैसा खिला नहीं जैसा अपने बगीचे में उगाया करता था। और ये भी अजीब इत्तेफाक था कि बीस साल बाद एक गुलाब बीस का मिल रहा है। हैप्पी वैलेंनटाईन्स डे!
Wednesday, February 13, 2008
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1 comment:
अपने ब्लोग में मै ने हिन्दी भी शामिल की है ।
http://rajichandrasekhar.wordpress.com
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