अगर आप फेसबुक नामके सामाजिक बंधन या संगठन(?) को जानते हैं तो आप ये भी जानते होगें कि किसी के होमटाऊन के रुप में अंकित शहर पर क्लिक कर आप उस शहर के उन तमाम लोगों तक पहुंच सकते हैं जिन्होंने अपने फेसबुक प्रोफ़ाईल में ईमानदारी से इस शहर का नाम लिखा हो। फेसबुक पर बने अपने एक ऐसे ही मेरे मित्र के होमटाऊन के ज़रिए जब मैंने उन बाक़ी शौकिनों सामाजिक प्राणियों को जानने की कोशिश की, जो इस ख़ूबसूरत शहर को अपना होमटाऊन कहते हैं, तो तक़रीबन 500 लोगों की सूची मेरे सामने आयी। इनमें रॉयटर्स के अनुभवी कैमरामैन फयाज़ काबली भी मिले... जिनके साथ मैंने 2000-02 में ख़ूब काम किया और जिनके साथ वो ख़ौफनाक यादें भी जुड़ीं हैं जब आदूश होटेल की चहारदीवारी के साथ किए गए आतंकी विस्फोट में एच टी के छायाकार प्रदीप भाटिया जी की जान गई (फ़याज़ इसके चश्मदीदों में एक रहे और ख़ुशकिस्मती से ज़िंदा भी क्योंकि वो भी वहीं फोटोग्राफी कर रहे थे).... और आसिम उमर जैसे नौजवान भी जिनको मैं बिल्कुल ही नहीं जानता....
लेकिन हैरत की बात है कि यहां किसी भी ऐसी लड़की का प्रोफ़ाईल नहीं मिला जो अपना होमटाऊन श्रीनगर बताती हो! ऐसा कैसे हो सकता है! क्या इस ख़ूबसूरत शहर में रहने वाली कोई भी ऐसी नहीं है जिसे फेसबुक के बारे में पता ना हो... या उन में से किसी ने अपना प्रोफ़ाइल यहां ना बनाया हो... ! दोनों ही बातें मुश्किल लगती हैं। इंटरनेट कैफे की भरमार वाले इस शहर में ज़रूर दो चार पांच तो ऐसी होगीं ही जिन्हें इंटरनेट सामाजिकता के ऐसे बंधन में अपने बांधने की इच्छा होगी। मेरा होमटाऊन मधुबनी है जो 'बिहार में भी बहुत पिछड़ा' माना जाता है। यहां के क़रीब तीस प्रोफाइल में आपको पांच-सात लड़कियां तो मिल ही जाएंगी... लेकिन श्रीनगर में नहीं!
अब या तो ये इस शहर (या इस राज्य) के माहौल की मजबूरी है... या फिर आतंकी ख़तरों से जूझ रहे इस शहर से अपनी पहचान जोड़े बिना बाक़ी दुनिया से जुड़ने की ललक... ऐसी कोई भी नहीं मिलेगी आपको जो फेसबुक पर स्वीकार रही हो कि हां वो श्रीनगर से हैं। यहां की दर्जनों ऐसी लड़कियां होगीं जो फेसबुक पर होंगी। लेकिन होमटाऊन के रुप में श्रीनगर शहर नहीं डालने के पीछे ज़रूर 'दुखतराने मिल्लत' जैसी कट्टरपंथी संगठनों का डर होगा... जिसकी नज़र में लड़कियों/महिलाओं का ब्यूटी पार्लर तक जाना गुनाह है... या फिर लश्करे जब्बार जैसे किसी आतंकी संगठन का... जिन्होने गोनी खान मार्केट के एक पार्लर में बुर्का नहीं पहनने वाली और एक महिला की टांग में गोली मार दी थी...! पर इतना तो तय है फेसबुक पर श्रीनगर की ख़वातीनों के नहीं होने का मतलब ये नहीं कि श्रीनगर में लड़कियां होती ही नहीं!
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3 comments:
मेरी पिछली जानकारी के मुताबिक भारत में फ़ेसबुक की लोकप्रियता कम ही है । यहां पर आर्कुट ज्यादा लोकप्रिय है । माईस्पेस पर भी कमोबेश फ़ेसबुक वाला हाल ही मिलेगा ।
उनके पास उनकी दीगर समस्यायें ही क्या कम है जो फेस बुक को और पाल लें...यही शायद वजह होगी. आपका शोध विचारणीय है जी.
क्या उम्दा शोध है आपका,
मान गए
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