Sunday, June 1, 2008

'हक़' की दुहाई देने वालों ने ही आखिरी हक़ छीना है

नीरज गुप्ता आईबीएन 7 से जुड़े हैं। वे अपराध से लेकर राजनीति तक... सभी विषयों पर धारदार रिपोर्टिंग करते हैं। अभी अभी वे गुर्जर आंदोलन कवर कर लौटे हैं। आरक्षण की ज़िद में गुर्जरों की एक अलग ही तस्वीर वो हमें दिखा रहे हैं...

राजस्थान में आरक्षण की आग लगी है.. गुर्जर गरज रहे हैं.. सरकार बेबस दिख रही है.. सरकार गलत है या गुर्जर- इस सवाल को लेकर अखबारों और खबरिया चैनलों पर लंबी बहस हो रही है.. लेख लिखे जा रहे हैं.. और तो और सड़क पर पान-सिगरेट के लिए निकले लोग भी वक्त बिताने के लिए इस मुद्दे पर ' निठल्ला चिंतन ' करते दिख जाते हैं.. लिहाज़ा यहां मैं इस बड़े पचड़े में नहीं पडूंगा..

गुर्जर आंदोलन की हफ्ते भर की कवरेज के दौरान मै बयाना और सिकंदरा, दोनों जगह गया.. गुर्जर आंदोलन के इन दोनों अहम पड़ावों पर रखे हैं 18 शव.. 12 बयाना में और 6 सिंकंदरा में.. पुलिस और गुर्जरों के बीच हुई झड़प में मारे गए थे वो लोग.. ज़िद है कि जब तक आरक्षण नहीं मिलेगा तब तक शवों को दाग नहीं मिलेगा.. मक्खियां भिनभनाती हैं उन ताबूतों पर.. अगरबत्तियों की खुशबू भी उन मक्खियों को नहीं हटा पाती.. आखिर वो ही भला क्यों हटें.. सरकार भी तो गुर्जरों को नहीं हटा पा रही.. भाषण.. नारेबाज़ी.. बहसबाज़ी और गुस्से के बीच वो ताबूत बेबस से पड़े नज़र आते हैं.. जैसे किसी ने बंधक बना रखा हो.. हिंदू धर्म के मुताबिक जब तक शव को दाग ना मिले, आत्मा को शाति नहीं मिलती.. लेकिन सरकार गुर्जरों को शांत नहीं कर पा रही और गुर्जर मरने वालों की आत्मा को..

एक ही मंज़र है वहां.. तंबू के नीचे ताबूत.. ताबूत में शव..शवों पर भिनभिनाती मक्खियां.. और उन्हीं मक्खियों के साथ आसपास जमा गुर्जर.. 24 घंटे की पेहरेदारी.. बस रोज़मर्रा के कामों के लिए घर जाना और फिर लौट आना..

वहां कुछ नहीं बदलता.. बदलती हैं तो बस शवों के इर्द-गिर्द रखी बर्फ की सिल्लियां.. वो रोज़ पिघलती हैं.. लेकिन पता नहीं कि सरकार और गुर्जरों के बीच जमी बर्फ आखिर कब पिघलेगी, और शवों को अंतिम संस्कार नसीब होगा..ये अजीब विडंबना है कि कामयाब हो या नाकाम, हर आंदोलन कुर्बानी मांगता है.. गुर्जर आंदोलन को भी अपने भविष्य का कोई पता नहीं.. लेकिन इतना साफ है कि कामयाब हो भी गए तो वो कामयाबी मौत के मातम से बड़ी नहीं होगी...
- नीरज गुप्ता

2 comments:

Suresh Gupta said...

बहुत दिन बाद गुर्जर आन्दोलन पर एक बिना मेकअप की ख़बर पढ़ी,सीधी सच्ची बात, न कोई गुटबंदी, न कोई राजनीति. शवों की दुर्दशा पर मन का दर्द क्यों सब को दिखाई नहीं दे रहा. "हमारी मांगे अगर नहीं मानी गई तो हम मरने वालों की आत्माओं को शान्ति नहीं मिलने देंगे", यह कैसा आन्दोलन है? यह तो सरकार के ख़िलाफ़ कम, मरने वालों के ख़िलाफ़ ज्यादा नजर आता है.

sanjay patel said...

इस रिपोर्ताज से गुर्जर आंदोलन को समझने की नई दृष्टि मिली.. हम भारतीय लोग वैश्विक ताक़त बन सकते हैं यदि ये सारी समस्याएं मिल बैठ कर सल्टा ली जाएँ.