मेरी अधूरी कविता को पूरी करने की गुज़ारिश को अबरार अहमद ने कुछ इस तरह लिया। अबरार की ये कोशिश मेरे लिए काफी मायने रखती है। सोचिए... एक ऐसी कविता जिसकी शुरुआती पंक्ति मैंने लिखी हो... आगे की अबरार ने... और उससे भी आगे की किसी और ने... तो कैसी सामूहिक कविता होगी... हर किसी के जानने समझने की दुनिया के हिसाब से सोच, परिकल्पना, दर्शन, अभिलाषा... आदि सामने आएगी। खैर अबरार की पंक्तियां महसूस करें।
अंतरिक्ष में बारात जाएगी।
मंगल से पानी आएगा।
धरती सूखती जाएगी।
और हम सब भोजन की जगह टैबलेट खा रहे होंगे।
किस किस पर लिखेगा तू किस किस को छोड़ेगा...
तेरी लेखनी से तेज़ सृष्टिचक्र चल रहा होगा।
इंसान की नजरों का पानी सूख चुका होगा।
बाप बेटे से तो बेटा बाप से उब चुका होगा।
रात उजली तो दिन अंधियारे की गर्त में होगा।
आदमी का चेहरा कई पर्त में होगा।
किस किस पर लिखेगा तू किस किस को छोड़ेगा...
तेरी लेखनी से तेज़ सृष्टिचक्र चल रहा...
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2 comments:
शुक्रिया उमा भाई। उम्मीद है यह सफर एक कारवां जरूर बनाएगा।
अच्छी लगी कविता.
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