patinetsसरबजीत को 1 अप्रैल को फांसी की ख़बर पाकिस्तान के एक उर्दू अख़बार डेली एक्सप्रेस के हवाले से आयी। जब मुझे जानकारी मिली तो मैंने इसकी आधिकारिक पुष्टि चाही। कोट लखपत जेल के सुपरिटेंडेंट जावेद लतीफ को फोन घुमाया। रविवार को वे उपलब्ध नहीं थे। पाकिस्तान के इंटेरियर मिनिस्टर हमीद नवाज़ ने भी अपना फोन नहीं उठाया। लाहौर पुलिस के डिप्टी डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन अतहर खान ने इस बाबत कोई जानकारी होने से मना कर दिया। बिना आधिकारिक पुष्टि के मैं इस ख़बर को रोके हुए था। क़रीब घंटे डेढ़ घंटे बाद एक हिन्दी और एक अंग्रेज़ी चैनल पर ये ख़बर चल पड़ी। सरबजीत को एक अप्रैल को फांसी...। अजीब हैरत की स्थिति थी। उनके पास भी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं लेकिन ख़बर लपक ली गई। एंजेसी के ज़रिए जो ख़बर आयी उसमें भी आधिकारिक पुष्टि नहीं होने की बात थी।
एक चैनल ने पाकिस्तान के मानवाधिकार मंत्री अंसार बर्नी के हवाले से पट्टी चलानी शुरु की। लेकिन मेरी बात बर्नी साहब से हुई तो उन्होने भी इस ख़बर के कंफर्मेशन से मना किया। उस चैनल को ऐसा कुछ कहने से भी। कहा सोमवार 10-11 बजे तक ही कहा जा सकेगा। क्योंकि ये सिर्फ दो मुल्कों के आपसी रिश्तों का ही नहीं एक पूरे परिवार की संवेदना से जुड़ा मामला भी है। चैनलों पर ख़बर चलने के साथ ही सरबजीत के परिवार की मन स्थिति का अंदाज़ा मुझे हो रहा था।
भगवान ना करे सच हो... पर अगर फांसी की तारीख मुकर्रर हो भी गई है तो होनी अपना काम करेगा। लेकिन मेरा प्वाईंट सिर्फ इतना है कि क्या आधिकारिक पुष्टि होने तक इस ख़बर को रोका नहीं जा सकता था? क्या सरबजीत के परिवारवालों की एक और रात की नींद उड़ने से बचाया नहीं जा सकता था। सच है कि ख़बर हमने भी चलायी लेकिन इस पर फोकस करते हुए कि सरबजीत के रिहा होने की उम्मीद अभी पूरी तरह टूटी नहीं है। दया याचिका के दो मौक़े उसके पास और हैं। शायद ऊपरवाला सुन ले।
Sunday, March 16, 2008
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5 comments:
दुख की बात है... हम इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले इतने गैर जिम्मेदार क्यों हो गए हैं... खबर की पुष्टि कहीं से भी नहीं हुई... एक चैनल ने शुरूआत क्या की... भेड़ियाधसान की तरह कमोवेश सभी सभी चैनलों पर खबर चलने लगी... मैं दावा कर सकता हूं कि किसी भी चैनल के पास पक्की जानकारी नहीं थी... सभी हवा में ही तीर चला रहे थे... जैसा कि अक्सर होता है... यहां बस एक सवाल छोड़ना चाहता हूं , कि क्या पत्रकार सच में बुद्धजीवी होते हैं(कुछ को छोड़कर)?
कौशल कुमार कमल-
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कहीं इस खबर के पीछे कोई राजनैतिक साजिश तो नही चल रही....?...हो सकता है सरबजीत की फाँसी की सजा माफ कर दी हो ।लेकिन मीडिया द्वारा यह खबर उड़ाई जा रही हो और दूसरी और राहुल गाँधी से सरबजीत की बहन का मिलना और राहुल द्वारा उस के बारे में बात करनें का आशवासन देना। कहीं राजनैतिक क्रेडिट लेने की चाल तो नही?
खेर! यह तो मेरे मन की शंका है।गलत भी हो सकती है।लेकिन बिना खबर की पुष्टि के खबर देना।बहुत गलत बात है।पत्र कारो को अपनी जिम्मेवारी के प्रति सचेत होना चाहिए।
कहीं हम पीछे न रह जाए..... ख़बर ब्रेक करने की अंधी दौड़ मची है न्यूज़ चैनलों में। सब ब्रेक करने का क्रेडिट लेना चाहते है....सब एक दुसरे से एक कदम आगे है...सिफॆ डीडी को छोड़कर...क्यों भइया...
लालची हमेशा अपने लालच में मारा जाता है,ऐसे न्यूज चैनल्स का अंत भी बुरा होगा।आपके दर्द में साझी हूं कम से कम आप खबरों को लेकर संवेदनशील तो हैं वरना मीडिया का तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी वाला हाल है। और वैसे ये न्यूज चैनल्स खबर को पहले ब्रेक करने का लालच कैसे छोड़ सकते हैं ये ये बेचारे तो अपनी आदत से मजबूर हैं
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