Sunday, March 16, 2008

जूता चोर, गद्दी छोड़, जूता-खोर


ये वैसा ही जूता है जिसे लेकर शोर मच रहा है। द्रास के पास मच्छोई ग्लेशियर पर भारतीय सेना के जवानों के लिए विंटर वार फेयर ट्रेनिंग पर डॉक्यूमेंटरी बनाते समय मुझे ये आज से सात आठ साल पहले पहनना पड़ा था। ये जूते कहां के बने हैं और इनकी कब ख़रीद हुई ये मुझे नहीं पता... पर इन जूतों में भी पैर को ठंड से तसल्ली नहीं थी। मैं दो-तीन जुराबें पहना करता था। जूते उतारते वक्त तब भी जुराबों में नमी जमी मिला करती थीं। बर्फ के तौर पर। हालांकि तब एनडीए की सरकार थी। सीएजी की रिपोर्ट अब खुलासा कर रही है कि फौज़ियों के जूतों की ख़रीददारी में घपला हुआ है। यूपीए के ज़माने में।
जूता चोर... गद्दी छोड़... जूताखोर... सोमवार को संसद में शायद यही नारा लगने वाला है। सियाचिन जैसे जमा देने वाले इलाक़ों में तैनात भारतीय सेना के जवानों के लिए ख़रीदे जा रहे जूतों में धांधली की बात सीएजी रिपोर्ट में सामने आने के बाद विपक्ष चुप नहीं बैठने वाला। ख़ासतौर पर वो एनडीए, जिसके रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नाडिस पर ताबूत घोटाले का आरोप लगाते हुए यूपीए ने ताबूत चोर तक करार दिया था।

2 comments:

रवीन्द्र प्रभात said...

बढिया है जी , आनंद आ गया !

अनिल रघुराज said...

फोटो जबरदस्त है, बात दमदार है। ताबूत चोर, जूता चोर का हल्ला मचाएंगे। असल में सेना में दलाली अंदर तक घुस चुकी है। और नेता इन दलालों से गहरे ताल्लुकात रखते हैं। बोफोर्स से पहली बार सामने आया यह सच शायद एक शाश्वत सच है। जो भी सत्ता में आएगा, वह खाएगा। इसलिए होना तो कुछ ऐसा चाहिए कि सेना की ज़रूरत ही खत्म हो जाए, जिसमें शायद अभी सदियां लग जाएंगी।