Sunday, April 26, 2009

सारे लेखक हो गए... पाठक कौन बचा?

महीने बाद ब्लॉग पर आया हूं। देख रहा हूं सभी लिख रहे हैं। किसी के दिल में तो किसी के दिमाग में एक विचार है। किसी के पास अनुभव है तो किसी के पास अपना कोई ख़्याल। अच्छी बात है। होने भी चाहिए। पर देखा कि कोई किसी को पढ़ नहीं रहा। न अनुभव की कद्र है ना ख़्याल पर भरोसा। ब्लॉगवाणी के हिट्स के हिसाब से बता रहा हूं। घंटों पहले की पोस्ट पर रीडर ज़ीरो हैं... पसंद की तो बात ही मत पूछिए। नापसंद का कोई कॉलम नहीं है। याद है मझे दो साल पहले का वो वक्त। छोटी से छोटी बात लिख देने पर भी एकाध पाठक तो आ ही जाते थे। फिर अब क्या हुआ। क्या अपना पढ़ना अच्छा नहीं लग रहा या किसी और का लिखना!

18 comments:

विवेक रस्तोगी said...

महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है तुरंत ध्यान देने की जरुरत है और एक और महत्वपूर्ण प्रश्न है कि पाठकों को कैसे हिन्दी ब्लागों पर लाया जाये।

गुलुश said...

उमाशंकर जी, सबसे बड़ी बात तो यह है कि आज ब्लाग जगत में विचारपूर्ण, अर्थपूर्ण और गहराई ली बात कोई पढ़ना ही नहीं चाहता।
तुकबंदियों पर सैकड़ों टिप्पणियां मिल रहीं हैं। मुझे तो लगता है पीठ खुजाने का खेल है। यदि किसी ब्लागर से पूछो कि अमुक ब्लाग देखा या पढ़ा, तो उनकी टिप्पणी थी-"भाई वे मेरे ब्लाग में नहीं आए, तो मैं भला क्यों जाऊं ?" इससे आप समझ सकते हैं कि ब्लाग जगत में क्या हो रहा है। हो भी रहा तो यही टिप्पणी है- उम्दा, बहुत खूब, भाई वाह, मजा आ गया, सराहनीय, सम्मत जैसे शब्द। विचार यहीं तक सीमित हो गए हैं।

Anonymous said...

(न अनुभव की कद्र है ना ख़्याल पर भरोसा।)
ये आपकी ईमानदारी टिप्पणी है या दिल की वादी से निकला सच? समय मिले तो बताइयेगा।

घर वापसी पर स्वागत।

चलो बच्चे के डाइपर बदलने के बीच इतनी फुरसत तो मिली कि ब्लॉग याद आया। लेकिन भाषा पढ़कर लगा कि कहीं इस बीच आप को प्रमोशन तो नहीं मिल गया दफ्तर में। तेवर तीखे नहीं खूंखार से लग रहे हैं।

आजकल तो कुछ हवा ही ऐसी है कि सिर्फ अपना पढ़ना ही अच्छा लग रहा है दूसरा तो कुछ जानता ही नही है।

"अर्श" said...

HA HA HA ACHHI BAAT KAHI AAPNE....


ARSH

संगीता पुरी said...

सही कह रहे हैं .. हिन्‍दी में सिर्फ लेखक ही बढ रहे हैं .. पाठक नहीं ।

सुशील छौक्कर said...

उमाशंकर जी हम तो सप्ताह में एक पोस्ट करते है और एक दिन में 15 या 20 टिप्पणी तो कर ही देते है।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

हां, उमा भाई। बात सच है कि सारे लेखक हो गए हैं लेकिन ऐसी बात नहीं है कि अब पाठक ही नहीं बचे हैं। लोग पढ़ते हैं सर। वैसे पढ़ाकूओं का ग्राफ गिरा जरूर है।

अनिल कान्त said...

शायद यहाँ लोग लगातार न लिखते रहने पर भुला देते हों ....या फिर सबको बस लिखकर पोस्ट करना अच्छा लगता हो ....अपना पढ़वाना चाहते हों ..पढना नहीं ....

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

समयचक्र said...

सच है कि सारे लेखक हो गए हैं लेकिन ऐसी बात नहीं है कि अब पाठक ही नहीं बचे हैं.......

मुनीश ( munish ) said...

At the most , if u r not a celebrity, blog is a platform to share photographs , saste sher and to vomit words!

Anil Kumar said...

आज ब्लॉगवाणी कुछ घंटे तक बहुत ही धीरे खुल रहा था। चिट्ठाजगत तो अभी तक बंद पड़ा है। इसीलिये पाठकों का अभाव था। लेकिन कोई बात नहीं, अब हम आ गये हैं!

अजय कुमार झा said...

are sir kahe garmaa rahe hain ham hain na pathak, waise ta jha hain, muda yahan par pathak hain, chaliye chhodiye aaje pata chala hai ki ego pathak jee typesetting ke naam se blog likh rahe hain ta hue na paathak, aap banki kaa chhodiye bas mast rahiye,.....

मुनीश ( munish ) said...

main hoon na! main padhunga apko bhaee!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

HAM HI LIKHEN, HAM HI BAANCHEN....
KYA BURAI HAI?

Udan Tashtari said...

हम हूँ न भाई हमेशा की तरह. बिंदास लिखो..! :)

Anonymous said...

Taaane Maar Rahe ho kyaa....

Unknown said...

Sach hai, likhne se pahale padana ana hi chahiye. Likin log padate te bhi hai. main un main se ek hun.

बाल भवन जबलपुर said...

leejiye hamane padh liya