पीएसी के सामने प्रधानमंत्री को पेश होने दिया जाए या नहीं इसे लेकर बीजेपी के भीतर ही पसोपेश पैदा हो गया है। सुषमा नियमों का हवाला दे कर कह रही हैं कि प्रधानमंत्री क्या, किसी भी मंत्री की पेशी लोकलेखा समिति के सामने नहीं हो सकती। लेकिन मुरली मनोहर जोशी उचित समय पर उचित फ़ैसले की बात कर रहे हैं। आखिर क्यों?
मुरली मनोहर जोशी बीजेपी की अंदरुनी राजनीति में बहुत पहले हाशिए पर धकेल दिए गए। वे इस समय पीएसी यानि लोकलेखा समिति के मुखिया हैं। पीएसी अपने तौर पर 2जी घोटाले की जांच में जुटी है। बीजेपी जेपीसी की मांग कर रही है। मतलब पीएसी के मुखिया के तौर जोशी जी की क्षमता और महत्व को नकार रही है। लगता है बीजेपी को अपनी ही पार्टी के एक वरिष्ठ नेता पर भरोसा नहीं!
कांग्रेस जेपीसी की मांग पर विपक्ष और कुछ साथी दलों की एकजुटता को तोड़ने में नाकाम रही है। प्रधानमंत्री ने पीएसी के सामने पेश होने की चिठ्ठी लिख कर बेशक एनडीए और यूपीए के कई साथी दलों का भरोसा न जीत पाए हों, जोशी जी के अहम को तो जीत ही लिया है। जोशी जी को भी लंबे समय बाद टीवी और अख़बारों की सुर्खियां मिली हैं। वो अपनी पार्टी की वजह से नहीं। पार्टी ने तो उनके श्रीनगर एकता यात्रा तक में उनको सुर्खियां नहीं बटोरने दी। अब सुर्खियां मिली हैं तो पीए की पेशकश की वजह से। अगर वो पीएम की पेशी की पेशकश को आज ठुकरा देते हैं तो वो तुरंत फोकस से हट जाएंगे। लिहाज़ा वो सही समय का इंतज़ार करेंगे। यानि चुप रह कर ये देखेंगे कि सरकार जेपीसी के लिए तैयार होती दिख रही है या नहीं या फिर बीजेपी समेत जेपीसी समर्थक पार्टियों के हमले की धार कब कुंद पड़ती है।
अभी की हालत में जोशी जी के दोनों हाथ लड्डू हैं। पीएम पेशी के लिए रिक्वेस्ट कर रहे हैं। बीजेपी पीएम की रिक्वेस्ट जल्द टर्न डाउन करवाने के लिए छटपटा रही है। बहुत बढ़ चुकी उम्र और ख़ासतौर पर अपनी ही पार्टी में घट चुकी राजनीतिक उपादेयता जोशी के लिए पीएम की पेशकश दिल्ली की इस सर्द में नज़ले खांसी की दवा जोशीना साबित हो रही है। बेशक उनकी महत्वाकांक्षा पर पार्टी का दबाव या फिर नियम भारी पड़े और प्रधानमंत्री उनके सामने औपचारिक रूप से पेश न हो पाएं, लेकिन जांच के सिलसिले पीएम से अनौपचारिक बातचीत से भी जोशी जी की महत्ता साबित होगी।
बीजेपी की सुषमा जी जैसी नेताओं, और थोड़ा ऊपर उठे तो आडवाणी जी, को समझ में आना चाहिए कि पार्टी में सबके अहम को साथ लेकर चलने का कितना फायदा होगा। सिर्फ वरिष्ठता के हवाले से पीएसी के चेयरमैन का पद ही अहम तो संतुष्टि देने के लिए काफी नहीं होता।
कांग्रेस के रणनीतिकार जेपीसी के घेरे से निकलने में बेशक नकारे साबित हुए हों लेकिन पीएम की ताज़ा पेशकश ने अभी कांग्रेस का हाथ, कुछ समय के लिए ही सही, ऊपर कर दिया है। अब उनको तलाश बीजेपी के अलावे जेपीसी मांग करने वाला दूसरी पार्टियों में भी जोशी जैसी हस्तियों की होगी।
Tuesday, December 28, 2010
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