Sunday, April 26, 2009
सारे लेखक हो गए... पाठक कौन बचा?
महीने बाद ब्लॉग पर आया हूं। देख रहा हूं सभी लिख रहे हैं। किसी के दिल में तो किसी के दिमाग में एक विचार है। किसी के पास अनुभव है तो किसी के पास अपना कोई ख़्याल। अच्छी बात है। होने भी चाहिए। पर देखा कि कोई किसी को पढ़ नहीं रहा। न अनुभव की कद्र है ना ख़्याल पर भरोसा। ब्लॉगवाणी के हिट्स के हिसाब से बता रहा हूं। घंटों पहले की पोस्ट पर रीडर ज़ीरो हैं... पसंद की तो बात ही मत पूछिए। नापसंद का कोई कॉलम नहीं है। याद है मझे दो साल पहले का वो वक्त। छोटी से छोटी बात लिख देने पर भी एकाध पाठक तो आ ही जाते थे। फिर अब क्या हुआ। क्या अपना पढ़ना अच्छा नहीं लग रहा या किसी और का लिखना!
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