पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ भारत में हैं। व्यक्तिगत दौरे पर। मेरा उनसे आज एक बार फिर आमना सामना हुआ। संक्षिप्त बात हुई। मैंने उनसे कहा कि जब आपने पाकिस्तान में इमरजेंसी लगाई तब मैं वहीं था... आपके इस क़दम से पाकिस्तान का बुद्धिजीवी वर्ग बहुत गुस्से में था। अब आप अलग रोल में हैं। पर पाकिस्तान में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा।
मुशर्रफ़ ने मेरी पंक्तियों का क्या मतलब निकाला मुझे नहीं पता... पर एक पूरी नज़र देखा। मैंने अपना कार्ड आगे बढा दिया। ये कहते हुए कि मौक़ा मिला तो फिर आना चाहूंगा। उन्होने कहा... "स्योर"।
मुशर्रफ़ उस कॉनट्रैक्ट से बंधे थे जिसमें उन्हें किसी से भी कुछ बात करने की मनाही थी। एक मीडिया ग्रुप के अलावा। सो वे अपनी तरफ से कम से कम बोले। अब राष्ट्रपति नहीं हैं... पर कमांडो जैसी अनुशासन का पालन अब भी कर रहे हैं। नहीं तो बताते कि आख़िर जिस वजह से उनके ख़िलाफ पाकिस्तान में मुहिम चलायी गई वो वजहें अब भी क़ायम हैं। ज़रदारी बतौर राष्ट्रपति उन्हीं अधिकारों को छोड़ने को तैयार नहीं जिन्होने जेनरल मुशर्रफ को मुशर्रफ़ के तौर पर ब्रांड कर दिया। पर फिलहाल वे ख़ामोशी में ही बेहतरी समझ रहे हैं। शायद किसी बेहतर कल के इंतज़ार में।
आगे भी और बात होगी।
Sunday, March 8, 2009
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4 comments:
उमा पता नहीं, उनकी चुप्पी बेहतर कल के लिए है अथवा कुछ और। लेकिन आजतक पर जब एक कार्यक्रम में उन्हें बोलते देखा तो लगा मानों जनरल की जनरली अभी भी जिंदा है।
मुशर्रफ दुनिया के सबसे घाघ आदमी है...............उनकी चुप्पी में भी बहुत कुछ है....................
होली की शुभकामनाएँ.................
मुशर्रफ से मिलने के बाद अब किसी से नहीं मिलेंगे क्या। कहां गायब हैं इतने दिनों से। आपकी कोई पोस्ट नहीं आई?
कलम की ताक़त चूक गई लगती है... सो जूता चलाने की कोशिश में जुट गया लगता हूं :)
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