मिट्टी पानी का खुराक
और धूप, हवा, छांव भी
पौधे ने गमले से सब कुछ लिया
पेड़ बनने के क्रम में।
पौधा गमले में अपनी जड़ें फैलता गया
पेड़ बनने के क्रम में।
और एक दिन,
पौधे ने गमले को ही चटका दिया
पेड़ बनने के क्रम में!!!
Thursday, July 12, 2007
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6 comments:
ये किसी निजी चोट की अभिव्यक्ति तो नहीं। वैसे ऐसा ज्ञान बुजुर्गों को ही दो-तीन औलादें पैदा करने के बाद होता है।
ये आंखों देखी सत्य है सर जी!
कई घरों की कहानी है, मित्र. बहुत अच्छी तरह गमले में सहेजी है. गहराईपूर्ण रचना.
achhi kavita likh rahe hain. mujhe yaad hai aap pahle bhi likha karte the. aaj kal Khabaron Ki Khabar lene me vyast rahte.
सही कह आपने
पर मेरे खयाल से अगर आप बडे अस्तित्व वाला पौधा छोटे गमले मे लगओगे तो यही होगा. मुझे इसमे जो सदेश समझ आया वो यह है की माली को पौधे लके हिसाब से जगह देनी चाहिये वरना पौधा क्यो जिम्मेदार होने लगा नाश का. आज कल घर, दफ्तर सब जगह यही समस्या है
www.yatishjain.com
पर ये भी तो हो सकता है-
वक्त ने अपना खेला खेला
गमले से जडो को बाहर ढकेला
उसने अपनी खुद जगह बनाई
सब लोगो को दी फिर छाई
विस्तार मे पढे http://qatraqatra.blogspot.com/2007/09/blog-post_03.html
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